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गिरिधर कविराय की कुंडलियाँ

१) गुन के गाहक

कुंडलियाँ

गुन के गाहक सहस नर, बिन गुन लहै न कोय।
जैसे कागा कोकिला, शब्द सुनै सब कोय॥
शब्द सुनै सब कोय, कोकिला सबै सुहावन।
दोऊ के इक रंग, काग सब भये अपावन॥
कह गिरिधर कविराय, सुनो हो ठाकुर मन के।
बिन गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुन के॥

भावार्थ कवि गिरिधर कहते हैं कि इस संसार में गुणों को चाहने वाले हज़ारों लोग हैं, पर बिना गुणों के किसी को सम्मान नहीं मिलता। जिस प्रकार कौआ और कोयल, दोनों का शब्द सब सुनते हैं, पर कोयल की मीठी बोली ही सबको अच्छी लगती है। दोनों का रंग एक जैसा काला होता है, फिर भी कौए को सब अपवित्र मानते हैं। कवि कहते हैं कि हे अपने मन में स्वयं को श्रेष्ठ समझने वालों, सुनो, बिना गुणों के कोई किसी को नहीं पूछता, गुणों के ग्राहक हज़ारों लोग हैं।

संदेश इस कुंडली से यह संदेश मिलता है कि मनुष्य की पहचान उसके रूप-रंग से नहीं, बल्कि उसके गुणों से होती है। जिस प्रकार कोयल अपनी मीठी वाणी के कारण प्रिय है, उसी प्रकार गुणी व्यक्ति का समाज में आदर होता है। हमें बाहरी सुंदरता की जगह अपने अंदर अच्छे गुणों को विकसित करने का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि गुणी व्यक्ति ही संसार में यश और सम्मान पाता है। सच्ची सुंदरता व्यक्ति के चरित्र और व्यवहार में बसती है, जो उसे समाज में मान-सम्मान दिलाती है। संसार व्यक्ति के आंतरिक मूल्य की ही कदर करता है, बाहरी दिखावे को नहीं।

२) लाठी में गुण

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लाठी में गुण बहुत हैं, सदा राखिये संग।
गहरि नदी, नाला जहाँ, तहाँ बचावै अंग॥
तहाँ बचावै अंग, झपटि कुत्ता कहँ मारै।
दुश्मन दावागीर, होय तिनहूँ को झारै॥
कह गिरिधर कविराय, सुनो हे धूर के बाठी।
सब हथियार न छाँड़ि, हाथ महँ लीजै लाठी॥

भावार्थ कवि गिरिधर कहते हैं कि एक साधारण सी लाठी में बहुत सारे गुण होते हैं, इसलिए इसे हमेशा अपने साथ रखना चाहिए। जब कोई गहरी नदी या नाला पार करना हो, तो लाठी गहराई का अंदाज़ा लगाकर हमारे शरीर की रक्षा करती है। यह झपटते हुए कुत्ते से बचाती है और यदि कोई दुश्मन अधिकार जमाने आए, तो उसे भी डराकर भगा देती है। कवि कहते हैं कि हे यात्रियों, सारे हथियार छोड़कर हाथ में एक लाठी अवश्य रखो।

संदेश इस कुंडली का संदेश है कि हमें साधारण और छोटी चीज़ों के महत्व को कभी कम नहीं समझना चाहिए। एक लाठी जैसी सामान्य वस्तु भी संकट के समय हमारी रक्षक बन सकती है। यह हमें आत्मनिर्भरता और विवेक से काम लेने की प्रेरणा देती है कि कैसे एक सरल उपाय से हम मुश्किलों का सामना कर सकते हैं। यह कुंडली हमें सिखाती है कि व्यावहारिक ज्ञान और सही समय पर सही वस्तु का उपयोग बड़े-बड़े शस्त्रों से भी अधिक प्रभावी हो सकता है। जीवन की यात्रा में हमें हर छोटी-बड़ी चीज़ के प्रति सजग और उसके उपयोग के प्रति जागरूक रहना चाहिए।

३) कमरी थोरे दाम की

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कमरी थोरे दाम की, बहुतै आवै काम।
खासा मलमल वाफता, उनकर राखै मान॥
उनकर राखै मान, बँद जहँ आड़े आवै।
बकुचा बाँधै मोट, राति को झारि बिछावै॥
कह गिरिधर कविराय, मिलत है थोरे दमरी।
सब दिन राखै साथ, बड़ी मर्यादा कमरी॥

भावार्थ कवि के अनुसार, कंबल बहुत कम दाम में मिलता है पर यह बहुत काम आता है। यह ख़ासा, मलमल और वाफ़्ता जैसे कीमती और मुलायम कपड़ों का भी मान रखता है। जब ये कीमती कपड़े मैले या फटे हों, तो कंबल उन्हें ढक लेता है। ज़रूरत पड़ने पर इससे सामान की गठरी भी बाँधी जा सकती है और रात में इसे झाड़कर सोने के लिए बिछाया भी जा सकता है। कवि कहते हैं कि यह कंबल थोड़े से पैसों में मिल जाता है, इसलिए इसे हमेशा साथ रखना चाहिए क्योंकि यह बड़ी मर्यादा रखने वाला है।

संदेश इस कुंडली से यह संदेश मिलता है कि किसी वस्तु की कीमत से ज़्यादा उसका उपयोग महत्वपूर्ण होता है। एक सस्ता कंबल भी समय पड़ने पर हमारे मान-सम्मान की रक्षा करता है और अनेक तरह से उपयोगी सिद्ध होता है। हमें वस्तुओं को उनकी कीमत से नहीं, बल्कि उनकी उपयोगिता से आँकना चाहिए। यह हमें सादगी और व्यावहारिकता का पाठ पढ़ाती है, जहाँ वस्तु का सच्चा मूल्य उसकी उपयोगिता से तय होता है, न कि उसके दाम में। हमें चीजों के वास्तविक महत्व को पहचानना चाहिए।

४) साँई सब संसार में

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साँई सब संसार में, मतलब को व्यवहार।
जब लगि पैसा गाँठ में, तब लगि ताको यार॥
तब लगि ताको यार, यार संगहि संग डोलै।
पैसा रहा न पास, यार मुख से नहिं बोलै॥
कह गिरिधर कविराय, जगत यहि लेखा भाई।
करत बेगरजी प्रीति, यार बिरला कोई साँई॥

भावार्थ कवि कहते हैं कि इस संसार में सभी का व्यवहार स्वार्थ पर आधारित है। जब तक किसी के पास धन-दौलत है, तभी तक उसके मित्र भी उसका साथ देते हैं। मित्र हर समय साथ-साथ घूमते हैं, पर जैसे ही धन समाप्त हो जाता है, वही मित्र मुँह से बोलना भी बंद कर देते हैं। कवि गिरिधर कहते हैं कि इस दुनिया का यही नियम है। बिना किसी स्वार्थ के प्रेम करने वाला सच्चा मित्र कोई विरला ही होता है।

संदेश यह कुंडली हमें सांसारिक व्यवहार की सच्चाई से परिचित कराती है। संदेश यह है कि हमें मित्रों का चुनाव बहुत सोच-समझकर करना चाहिए। सच्चे और झूठे मित्रों की पहचान संकट के समय ही होती है। हमें उन लोगों से सावधान रहना चाहिए जो केवल अपने मतलब के लिए मित्रता करते हैं और निस्वार्थ प्रेम करने वालों का सम्मान करना चाहिए। यह हमें रिश्तों में विवेकपूर्ण होने और चापलूसी से प्रभावित न होने की सीख देती है। एक सच्चा और निस्वार्थ मित्र जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है, जिसे पाना कठिन है ।

५) रही लटपट काटि दिन

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रही लटपट काटि दिन, अरु बरु घामें माँ सोय।
छाँह न बाकी बैठिये, जो तरु पतरो होय॥
जो तरु पतरो होय, एक दिन धोखा दैहैं।
जा दिन बहै बयारि, टूटि तब जर से जैहैं॥
कह गिरिधर कविराय, छाँह मोटे की गहिये।
पाती सब झरि जायँ, तऊ छाया में रहिये॥

भावार्थ कवि कहते हैं कि भले ही कठिनाई में दिन बिता लो और धूप में सो जाओ, पर कभी भी किसी पतले अर्थात् कमज़ोर पेड़ की छाया में मत बैठो। जो पेड़ कमज़ोर होता है, वह एक दिन अवश्य धोखा देगा। जिस दिन तेज़ हवा चलेगी, वह जड़ से टूटकर गिर जाएगा। इसलिए कवि गिरिधर कहते हैं कि हमेशा मोटे अर्थात् मज़बूत पेड़ की छाया का सहारा लेना चाहिए। भले ही उसके सारे पत्ते झड़ जाएँ, फिर भी वह अपनी छाया में सुरक्षा प्रदान करेगा।

संदेश इस कुंडली का संदेश है कि हमें हमेशा समर्थ और शक्तिशाली व्यक्ति का ही सहारा लेना चाहिए। कमज़ोर व्यक्ति या साधन संकट के समय स्वयं ही नष्ट हो जाते हैं और वे हमारी रक्षा नहीं कर सकते। एक मज़बूत सहारा हर परिस्थिति में हमारा साथ निभाता है, इसलिए हमें मित्र या आश्रयदाता का चुनाव सोच-समझकर करना चाहिए। यह हमें जीवन में सही और स्थायी आधार चुनने के लिए प्रेरित करती है, ताकि भविष्य में हमें किसी धोखे या संकट का सामना न करना पड़े। एक विश्वसनीय सहारा कठिन समय में भी सुरक्षा और स्थिरता प्रदान करता है।

६) पानी बाढै नाव में

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पानी बाढै नाव में, घर में बाढै दाम।
दोनों हाथ उलीचिये, यही सयानो काम॥
यही सयानो काम, राम को सुमिरन कीजै।
पर स्वारथ के काज, शीश आगे धर दीजै॥
कह गिरिधर कविराय, बड़ेन की याही बानी।
चलिए चाल सुचाल, राखिए अपनो पानी॥

भावार्थ कवि कहते हैं कि जिस प्रकार नाव में पानी भरने लगे तो उसे दोनों हाथों से बाहर निकालना समझदारी का काम है, उसी प्रकार जब घर में धन-संपत्ति बढ़ने लगे तो उसे दान-पुण्य और परोपकार के कार्यों में लगाना चाहिए। यही समझदारी है कि ईश्वर का स्मरण करते हुए दूसरों की भलाई के लिए अपना सर्वस्व त्याग करने को तत्पर रहें। कवि कहते हैं कि बड़ों ने यही सीख दी है कि हमेशा अच्छे रास्ते पर चलो और अपना मान-सम्मान बनाए रखो।

संदेश इस कुंडली से यह संदेश मिलता है कि धन का संचय करने के बजाय उसका सदुपयोग करना चाहिए। जिस तरह नाव से पानी न निकालने पर वह डूब जाती है, उसी तरह धन को परोपकार में न लगाने से वह व्यर्थ हो जाता है और व्यक्ति का सम्मान भी घटता है। हमें अपनी संपत्ति का उपयोग दूसरों की भलाई के लिए करना चाहिए, इसी से जीवन में सच्चा सम्मान मिलता है। यह हमें सिखाती है कि धन को रोकने से वह बोझ बन जाता है, जबकि उसे परोपकार में लगाने से समाज का कल्याण होता है और हमारा यश बढ़ता है। सच्चा बड़प्पन धन के संग्रह में नहीं, बल्कि उसके त्याग और दान में है।

७) राजा के दरबार

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राजा के दरबार में, जैये समया पाय।
साईं तहाँ न बैठिये, जहँ कोउ देय उठाय॥
जहँ कोउ देय उठाय, बोल अनबोले रहिये।
हँसिये नहीं हहाय, बात पूछे ते कहिये॥
कह गिरिधर कविराय, समय सों कीजै काजा।
अति आतुर नहिं होय, बहुरि अनखैहैं राजा॥

भावार्थ कवि गिरिधर कहते हैं कि राजा के दरबार में सही समय देखकर ही जाना चाहिए। वहाँ ऐसी जगह कभी नहीं बैठना चाहिए, जहाँ से कोई आपको उठा दे। यदि कोई उठा भी दे तो बिना कुछ बोले शांत रहना चाहिए। बिना कारण ज़ोर-ज़ोर से नहीं हँसना चाहिए और जब कुछ पूछा जाए, तभी बोलना चाहिए। कवि कहते हैं कि हर काम सही समय पर करना चाहिए और किसी भी बात के लिए बहुत अधिक उतावलापन नहीं दिखाना चाहिए, वरना राजा नाराज़ हो सकते हैं।

संदेश इस कुंडली का संदेश है कि हमें स्थान और अवसर के अनुसार ही आचरण करना चाहिए। विशेषकर जब हम किसी बड़े या सम्मानित व्यक्ति के समक्ष हों, तो हमें अनुशासन, संयम और विवेक का पालन करना चाहिए। अनुचित व्यवहार और उतावलापन अपमान का कारण बन सकता है, इसलिए हर कार्य सोच-समझकर और सही समय पर करना चाहिए। यह हमें सामाजिक शिष्टाचार और आत्म-नियंत्रण का महत्व सिखाती है, जो सम्मान अर्जित करने और अनावश्यक विवादों से बचने के लिए आवश्यक है। धैर्य और उचित व्यवहार ही सफलता और स्वीकृति की कुंजी है।

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