एक जंगल में एक तोते का परिवार रहता था। एक दिन, जंगल में बहुत तेज आँधी आई। इस आँधी में तोते के दो छोटे बच्चे अपनी माँ से बिछड़ गए और अलग-अलग दिशाओं में उड़ गए।
उनमें से एक बच्चा डाकुओं के अड्डे के पास एक पेड़ पर जा गिरा। वह वहीं रहने लगा। डाकू दिन भर लोगों को लूटने और गाली-गलौज करने की बातें करते थे। उनकी बातें सुन-सुनकर तोते ने भी वैसी ही बातें सीख लीं। वह भी “पकड़ो!”, “मारो!”, “लूट लो!” चिल्लाने लगा।
दूसरा तोता एक साधु के आश्रम के पास गिरा। वह साधु बहुत दयालु थे। आश्रम में हमेशा भजन-कीर्तन और अच्छी-अच्छी बातें होती थीं। उन बातों को सुनकर दूसरे तोते ने भी मीठी बोली सीख ली। वह “राम-राम,” “आपका स्वागत है,” “प्रसाद ले लो” जैसे प्यारे शब्द बोलने लगा।
एक दिन, उस राज्य का राजा शिकार करते-करते रास्ता भटक गया। घूमते-घूमते वह डाकुओं के अड्डे के पास पहुँच गया। जैसे ही राजा पेड़ के नीचे आराम करने बैठा, डाकुओं का तोता चिल्लाने लगा, “पकड़ो-पकड़ो! इसके पास बहुत सारा सामान है! लूट लो!” तोते की आवाज सुनकर राजा डर गया और वहाँ से तुरंत भाग निकला। भागते-भागते राजा साधु के आश्रम के पास पहुँच गया। वह बहुत थक गया था। जैसे ही वह आश्रम के पास पहुँचा, साधु का तोता मीठी आवाज में बोला, “आइए महाराज, आपका स्वागत है। अंदर आकर पानी पीजिए और आराम कीजिए।”
एक जैसे दिखने वाले दो तोतों का इतना अलग-अलग व्यवहार देखकर राजा को बहुत हैरानी हुई। उसने साधु से इसका कारण पूछा। साधु ने मुस्कुराते हुए समझाया, “राजन, यह सब संगति का असर है। एक तोता डाकुओं के साथ रहा, तो उसने उनकी ही तरह कड़वी बातें सीखीं। दूसरा तोता मेरे साथ आश्रम में रहा, तो उसने अच्छी बातें सीखीं। हम जैसी संगत में रहते हैं, वैसे ही बन जाते हैं।” राजा को सारी बात समझ में आ गई।
शिक्षा: इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें हमेशा अच्छे लोगों की संगति में रहना चाहिए, क्योंकि संगति का हमारे जीवन पर बहुत गहरा असर पड़ता है।