फिल्मों का हमारे जीवन और समाज में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है और हमारी युवा पीढ़ी पर इसका अत्यधिक प्रभाव देखने को मिलता है आजकल आनेवाली अधिकांश फ़िल्में हमारी युवा पीढ़ी को भटकाने का काम कर रही है |” इसके बारे में उदाहरण देते हुए इसके पक्ष या विपक्ष में अपने विचार प्रस्तुत कीजिए |

फिल्मों का हमारे जीवन और समाज पर सकारात्मक प्रभाव

फिल्में न केवल मनोरंजन का साधन हैं, बल्कि वे हमारे जीवन और समाज पर गहरा प्रभाव डालती हैं। फिल्मों से हमें नए विचार और अलग-अलग जगह की संस्कृतियों के बारे में पता चलता है। इससे हमारी सोचने की सीमा बढ़ती है और हम संसार को ज्यादा बेहतर समझ पाते हैं।

फिल्मों द्वारा कई बार सामाजिक समस्याओं को उठाया जाता है। करोड़ों लोग जब इन फिल्मों को देखते हैं तो उन्हें इन समस्याओं का पता चलता है। दर्शकों के मन में मामले के बारे में जागरूकता बढ़ती है। सरकार पर भी दबाव बनने लगता है कि वो इन सामाजिक समस्याओं को हल करने के लिए कदम उठाए। इससे इन समस्याओं के हल होने की संभावना काफी बढ़ जाती है। उदाहरण के लिए, टॉयलेट एक प्रेम कथा ने गांवों में शौचालय की कमी की समस्या को उठाया था। 2010 में बनी वेल डन अब्बा नामक फिल्म ने पानी की कमी का मामला उठाया था।

इसके अलावा, फिल्में हमें ऐतिहासिक घटनाओं और व्यक्तित्वों से परिचित कराती हैं। वे हमें इतिहास के महत्वपूर्ण क्षणों में ले जाती हैं और ऐतिहासिक व्यक्तियों के जीवन को नज़दीक से दिखाती हैं। उदाहरण के तौर पर मणिकर्णिका फिल्म में झाँसी की रानी के जीवन के बारे में विस्तार से बताया गया है। इसके अलावा तान्हाजी, केसरी, और ‘मंगल पांडे’ जैसी फिल्में भी हमें हमारे इतिहास के बारे में काफी कुछ बताती है।

फिल्में नई भाषाओं और संस्कृतियों के प्रति हमारी रुचि जगाते हैं। विदेशी फिल्में देखकर हमारे मन में विदेशी संस्कृतियों को जानने की उत्सुकता जागती है और नई भाषाएँ सीखने की इच्छा होती है। अभी हाल के कुछ वर्षों में युवा पीढ़ी में कोरिया भाषा सीखने की काफी उत्सुकता इन्ही फिल्मों की वजह से बढ़ी है।

फिल्में युवा पीढ़ी को इस बात के लिए भी प्रेरित करती है कि अपने अंदर की कला को दबाए नहीं वअपनी रचनात्मकता (क्रिएटिविटी) को लोगों के सामने लाए। 3 इडियट्स और तारे जमीन पर इसी तरह की फ़िल्में हैं। फिल्मों की लोकप्रियता के कारण अब लोग नृत्य, संगीत , फ़िल्में बनाना, कहानी लिखना इन सब क्षेत्रों में भी करियर बनाने की सोचने लगे हैं।

फिल्में नई पीढ़ी को उनके सपनों का पीछा करने के लिए प्रेरित करती हैं। वे हमें सिखाती हैं कि लगातार प्रयत्न और संघर्ष करने से असंभव भी संभव हो जाता है। चाहे हमारा लक्ष्य पैसा कमाना हो, करियर में तरक्की करनी हो या खेल कूद में नाम कमाना हो, कड़ी मेहनत से सब संभव है। दंगल फिल्म इस बात का उदाहरण है कि किस तरह लड़कियाँ भी मेहनत कर कुश्ती जैसे खेल में नाम कमा सकती है।

इस प्रकार, फिल्में हमारे जीवन और समाज पर काफी सकारात्मक प्रभाव डालती हैं। वे हमें प्रेरित करती हैं, हमें सिखाती हैं, और एक बेहतर व्यक्ति बनने का रास्ता दिखाती है। आज की युवा पीढ़ी और बच्चों की आधुनिक सोच का काफी श्रेय फिल्मों को ही दिया जा सकता है।




फिल्मों का हमारे जीवन और समाज पर नकारात्मक प्रभाव

फिल्में, जो विश्व भर में मनोरंजन का एक प्रमुख स्रोत हैं, अक्सर हमारे जीवन और समाज पर अनदेखे नकारात्मक प्रभाव डालती हैं। इनका प्रभाव विशेषकर युवा पीढ़ी पर अधिक होता है, जो फिल्मों के माध्यम से जीवन के बारे में अपनी समझ बनाती है।

फिल्मों में अक्सर जीवन की अवास्तविक छवि प्रस्तुत की जाती है। उदाहरण के लिए, कई रोमांटिक फिल्में जैसे कि “दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे” या “ये जवानी है दीवानी” अवास्तविक रोमांटिक कहानियां प्रस्तुत करती हैं, जो युवाओं में रिश्तों को लेकर अवास्तविक अपेक्षाएं पैदा करती हैं।

इसके अलावा, फिल्मों में हिंसा और अपराध की अत्यधिक प्रस्तुति, जैसे “गैंग्स ऑफ वासेपुर” या “धूम” सीरीज, युवाओं के मन में हिंसा के प्रति एक अनुकूलन या स्वीकृति पैदा कर सकती है। फिल्मों में सामाजिक और लैंगिक स्टीरियोटाइप्स, जैसे कि “कभी खुशी कभी गम” में महिलाओं की पारंपरिक भूमिकाओं का चित्रण, युवाओं के मन में गलत धारणाएँ और पूर्वाग्रह पैदा करते हैं।

भौतिकवाद और उपभोक्तावाद का बढ़ावा, जैसे “स्टूडेंट ऑफ द ईयर” में दिखाई गई लग्ज़री लाइफस्टाइल, युवाओं में अत्यधिक खर्च करने की प्रवृत्ति को बढ़ाती है। फिल्मों के अधिक देखने से शैक्षणिक और व्यक्तिगत विकास में बाधा आती है, जैसा कि “जब वी मेट” या “जिंदगी ना मिलेगी दोबारा” जैसी फिल्मों में दिखाए गए आकर्षक और चिंतामुक्त जीवनशैली से युवा प्रभावित होते हैं।

अश्लीलता और अनुचित सामग्री की प्रस्तुति, जैसे कुछ आधुनिक फिल्मों में दिखाई गई है, युवाओं के नैतिक और सामाजिक मूल्यों पर बुरा प्रभाव डालती है। नशा और शराब का सेवन ग्लैमराइज़ करना, जैसे “देव डी” में दिखाया गया, युवाओं को इन बुराइयों की ओर प्रेरित कर सकता है।

राजनीतिक और सामाजिक संदेशों का गलत प्रसार, जैसे कि “रंग दे बसंती” या “सत्याग्रह” में दिखाए गए, युवाओं के विचारों और व्यवहार पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। वास्तविकता से दूरी, जैसे कि “कृष” या “धूम” सीरीज में दिखाई गई अत्यधिक काल्पनिक कहानियां, युवाओं में वास्तविक जीवन की समस्याओं और चुनौतियों से अवगत नहीं रहने की प्रवृत्ति पैदा करती हैं।

इन उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि फिल्मों का हमारे जीवन और समाज पर एक गहरा और अक्सर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह जरूरी है कि हम फिल्मों को विवेकपूर्ण तरीके से देखें और उनके द्वारा प्रस्तुत सामग्री के प्रति सजग रहें। युवा पीढ़ी को फिल्मों के प्रभाव से सुरक्षित रखने के लिए शिक्षा और जागरूकता महत्वपूर्ण हैं। इसके साथ ही, समाज को भी फिल्मों की सामग्री और उनके प्रभाव को समझने और उसका संतुलित आकलन करने की जरूरत है। फिल्में हमारे समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, लेकिन उनके नकारात्मक प्रभावों को समझना और उनसे बचाव करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।

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