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मैं नदी हूँ ।

मैं एक नदी हूँ। मेरा जन्म ऊँचे-ऊँचे बर्फीले पहाड़ों की गोद में हुआ है। सूरज की सुनहरी किरणें जब बर्फ पर पड़ती हैं, तो बर्फ पिघलकर पानी की नन्ही-नन्ही बूँदों में बदल जाती है। इन्हीं बूँदों से मिलकर मेरा जन्म होता है। शुरुआत में मैं एक पतली सी धारा होती हूँ, शरारती और चंचल। पहाड़ों की ढलानों पर मैं उछलती-कूदती, पत्थरों से टकराती और “कल-कल” का संगीत गाती हुई आगे बढ़ती हूँ।

जैसे-जैसे मैं आगे बढ़ती हूँ, कई और छोटी-छोटी धाराएँ आकर मुझसे मिल जाती हैं और मेरा आकार बड़ा हो जाता है। पहाड़ों से उतरकर मैं घने जंगलों से होकर गुजरती हूँ। पेड़-पौधे मुझे देखकर झूमने लगते हैं और अपनी छाया से मुझे ठंडक देते हैं। जंगली जानवर मेरे किनारे आकर अपनी प्यास बुझाते हैं। मैं किसी के साथ भेदभाव नहीं करती, मैं सबकी हूँ।

जब मैं मैदानी इलाकों में पहुँचती हूँ, तो मेरी गति थोड़ी धीमी हो जाती है और मैं शांत और गंभीर हो जाती हूँ। मेरे किनारों पर गाँव और शहर बस जाते हैं। लोग मेरे पानी का उपयोग पीने, नहाने और कपड़े धोने के लिए करते हैं। किसान मेरे पानी से अपने खेतों की सिंचाई करते हैं, जिससे फसलें लहलहा उठती हैं और सबको अनाज मिलता है। मुझे बहुत खुशी होती है जब मैं किसी के काम आती हूँ।

लेकिन मुझे दुख भी होता है। जब शहरों और कारखानों की गंदगी मुझमें मिला दी जाती है, तो मेरा साफ और मीठा जल गंदा और जहरीला हो जाता है। लोग मेरे अंदर कूड़ा-करकट फेंकते हैं। यह दर्द मेरे लिए असहनीय होता है। मैं आप सबसे विनती करती हूँ कि मुझे साफ रखें, क्योंकि मैं आपका जीवन हूँ।

मेरा सफर कभी रुकता नहीं है। मैं हमेशा चलती रहती हूँ, यही मेरा स्वभाव है। मेरा अंतिम लक्ष्य होता है विशाल समुद्र में मिल जाना। जब मैं समुद्र से मिलती हूँ, तो मेरा अपना नाम, मेरा अपना अस्तित्व समाप्त हो जाता है और मैं भी समुद्र का ही एक हिस्सा बन जाती हूँ।

मेरा जीवन त्याग, सेवा और निरंतर आगे बढ़ते रहने का संदेश देता है। मैं भी यही चाहती हूँ कि आप सब मेरे जैसे बनें, हमेशा दूसरों की मदद करें और जीवन में कभी भी हार मानकर रुकें नहीं, हमेशा आगे बढ़ते रहें।

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