राघव एक छोटे से गाँव में रहता था। वह बहुत मेहनती तो था, परंतु जीवन में कुछ बड़ा हासिल करने का सपना भी रखता था। उसके पिता किसान थे और दिन-भर खेतों में काम किया करते थे। राघव उनकी मदद जरूर करता, मगर उसका मन पढ़ाई में अधिक लगता था। हर रोज़ भोर में उठकर वह पहले पिता के साथ खेत में पानी देता, फिर विद्यालय जाने से पूर्व घर की छोटी-मोटी जिम्मेदारियाँ पूरी करता।
विद्यालय में शिक्षक उसकी लगन देखकर प्रसन्न होते और उसे हमेशा प्रोत्साहित करते। राघव के मित्र अक्सर शिकायत करते कि उसे खेलने-कूदने का समय ही नहीं मिलता। लेकिन राघव का मानना था कि यदि भविष्य को संवारना है, तो अभी अपनी मेहनत में कोई कमी नहीं रखनी चाहिए। वह पढ़ाई के साथ-साथ खेती के गुर भी सीखता जा रहा था। रात में पढ़ते-पढ़ते नींद आने लगती, लेकिन वह जागकर बार-बार दोहराता—“मेहनत का फल मीठा होता है।”
समय बीता और परीक्षाओं का परिणाम आया। राघव ने अपने जिले में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया। उसकी मेहनत रंग लाई थी। गाँव वालों ने उसके इस उपलब्धि पर भव्य स्वागत किया। पिता की आँखों में गर्व और खुशी के आँसू थे। राघव ने उन्हें बताया कि अब वह उच्च शिक्षा के लिए शहर जाना चाहता है, जिससे वह खेती में आधुनिक तकनीकों का प्रयोग करना सीख सके। पिता ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा, “बेटा, सफलता की राह पर डटे रहना।”
कुछ ही वर्षों में राघव ने एक आधुनिक कृषि केंद्र स्थापित कर लिया। गाँव के किसान वहाँ आकर नए तरीकों से खेती करना सीखते और अपनी उपज बढ़ाते। राघव की मेहनत ने न सिर्फ उसके स्वयं के भविष्य को सँवारा, बल्कि पूरे गाँव को उन्नति का मार्ग दिखाया। इस तरह उसने साबित कर दिया कि सच्ची लगन और परिश्रम से सब कुछ संभव है।