आधुनिक जीवनशैली अनैतिकता और स्वछंदता को बढ़ावा दे रही है | इस कथन पर अपनी राय देते हुए नैतिक शिक्षा के महत्त्व पर प्रकाश डालिए |
पिछले दो सदियों में पूरे संसार में लोकतंत्र एक शासन व्यवस्था के रूप में लोकप्रिय हुई है | राजाओं, महाराजाओं का जमाना बीत गया | अब आम लोगों का जमाना है जो अपने शासक को स्वयं चुनते हैं और यदि उनके काम से प्रसन्न नहीं हैं तो उन्हें हटाकर किसी अन्य को सत्ता सौंप देते हैं | इस तरह आज के समय में सत्ता और शक्ति का स्रोत आम आदमी है | आम आदमी के इस बढ़े हुए महत्त्व ने स्वतंत्रता को एक नई परिभाषा दी है |
आज मनुष्य स्वयं पर कम से कम बंधन चाहता है | राजनैतिक बंधन तो अब नहीं के बराबर रहा | धार्मिक, सामजिक और भावनात्मक बंधनों को भी अब वो स्वीकार कराने को तैयार नहीं | मनुष्य अपना जीवन अपनी मर्जी से अपनी शर्तों पर जीना चाहता है | यह व्यक्ति स्वातंत्र्य आज आधुनिकता की परिभाषा भी बन गई है | जो व्यक्ति सामजिक बंधनों को नहीं मानता, अपनी मर्जी करता है उसे आधुनिक माना जाता है | अंग्रेजी में इससे जुडी एक कहावत बहुत प्रसिद्द हो गई है – “My Life My Way” अर्थात “मेरा जीवन – मेरी मर्जी” | आज के समय में यह सबसे बड़ा राजनैतिक और सामजिक मूल्य बन के उभरा है | यदि कोई राजनैतिक व्यवस्था इस मूल्य की रक्षा नहीं कर पा रही तो उसे लोकतंत्र नहीं माना जाता है | यदि कोई समाज इस मूल्य का विरोध का रहा है तो उस समाज को रूढ़ीवादी और अप्रगतिशील माना जाता है |
आधुनिक जीवनशैली की इस स्वतंत्र जीवन पद्धति ने जहाँ मनुष्य के व्यक्तित्व को शक्तिशाली बनाया है, वहीं उसे स्वच्छंद भी बना दिया है | जब मनुष्य हर काम अपनी मर्जी से ही करता है तो वो कई बार सही और गलत की रेखा पार कर जाता है | वो यह मानने लगता है कि सही और गलत की परिभाषा वह स्वयं बनाएगा | लोग अपनी स्वतंत्रता को ऐसी सीमा तक खीच ले जाते हैं कि कभी-कभी स्वयं उसे और उसके कारण समाज को हानि पहुँचने लगती है |
आधुनिक जीवनशैली के नशे में डूबे लोग अपने गलत कार्यों को भी सही ठहराने लगते हैं | लोगों में शराब और नशे की अन्य सामग्रीओं के प्रति बढ़ता रुझान इस बात का सबूत है | देर से जागना, देर से सोना, नशा करना, तेज गाडी चलाना, खराब चरित्र सब को इस एक तर्क से सही ठहराया जाता है कि “मैं अपना जीवन अपने तरीके से जीऊंगा |” इससे उनके स्वास्थ्य को होनेवाला नुकसान, समाज को होनेवाला नुकसान उन्हें नजर नहीं आता | न वो इस विषय पर सोचना चाहते हैं | नैतिक विषयों पर तो उन्हें कुछ सुनना ही नहीं है | नैतिकता की बातें उनको कोरी बकवास लगती है | ऐसे लोग कई बार देश के कानून को तोड़ने से भी नहीं झिझकते |
ऐसे हालातों में समाज के जिम्मेदार नागरिकों का उत्तरदायित्व बढ़ जाता है | हमें कम उम्र से ही बच्चों को नैतिक शिक्षा देनी शुरू कर देनी चाहिए | माता-पिता को चाहिए कि वो अपने बच्चों से लगातार इस विषय पर बातें करते रहे | उसे उसकी व्यक्तिगत आजादी तो दे पर साथ ही साथ उसे उसकी आजादी की सीमा भी बताए | समाज के प्रति उनकी जिम्मेदारियों का उन्हें अहसास कराए | विद्यालयों की भूमिका ऐसे में और ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है | बच्चें अपना लंबा समय विद्यालयों में बिताते हैं | उन्हें विद्यालयों में नैतिक शिक्षा देनी जरूरी है | शिक्षक को चाहिए को वह विद्यार्थिओं को प्रतिदिन परिवार, समाज और देश के प्रति उनकी जिम्मेदारियों को बताता रहे | उन्हें समझाए कि एक व्यक्ति के रूप में संविधान ने उन्हें पूरी आजादी दी है किंतु वे सामाजिक उत्तरदायित्वों से बंधे हैं | शिक्षकों द्वारा दी हुई नैतिक शिक्षा बच्चों के चरित्र को मजबूत बनाती है |
यह जरूरी नहीं कि स्वतंत्रता हर व्यक्ति को इतना समझदार बना दे कि उसे सही गलत का पता हो | ऐसे में नैतिक शिक्षा का महत्त्व बढ़ जाता है | नैतिक शिक्षा के द्वारा लोगों को यह समझाना है कि उनके कौन से कार्य समाज के हित में हैं और कौन से अहित में | अनैतिक आचरणों से समाज को होनेवाले नुकसान के बारे में उन्हें बताना चाहिए | बचपन में दी हुई नैतिक शिक्षा बहुत कम उम्र से ही मनुष्य को सही-गलत का भेद करना सीखा देती है | इससे वह गलत राह पर नहीं जाता | वह अपने व्यवहार पर संयम रख पाता है और अपनी स्वतंत्रता की सीमा समझता है | इन सब कारणों से नैतिक शिक्षा आज के समाज की जरुरत बन गई है |