बदला तो मैंने भी लिया था

1) बुद्धिमान बदला नहीं लेते हैं। जहाँ मूर्ख बदला लेते हैं, वहाँ बुद्धिमान दूसरों को क्षमा करके उन्हें सही राह दिखाते हैं।

क) बुद्धिमान व्यक्ति बदला लेने के बजाय क्या करते हैं?
उत्तर: बुद्धिमान व्यक्ति बदला लेने के बजाय दूसरों को क्षमा करते हैं और उन्हें सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं। वे अपनी समझदारी से समाज के लिए प्रेरणादायक बन जाते हैं।

ख) खेल के मैदान में किस प्रकार की घटनाएँ होती रहती हैं?
उत्तर: खेल के मैदान में आए दिन झगड़े-झंझट और टकराव की घटनाएँ होती रहती हैं। प्रतिस्पर्धा के कारण खिलाड़ी कभी-कभी आक्रामक हो जाते हैं, लेकिन खेल में यह सब चलता है और इसे खेल भावना से लेना चाहिए।

ग) ध्यानचंद किस घटना के बारे में बताने जा रहे हैं?
उत्तर: ध्यानचंद सन 1933 की एक दिलचस्प घटना के बारे में बताने जा रहे हैं, जब वे पंजाब रेजीमेंट की ओर से हॉकी खेला करते थे और एक महत्वपूर्ण मैच में हिस्सा ले रहे थे।

घ) माइनर्स टीम के खिलाड़ी ने ध्यानचंद के साथ क्या किया?
उत्तर: माइनर्स टीम के एक खिलाड़ी ने गुस्से में आकर ध्यानचंद के सिर पर हॉकी स्टिक से प्रहार किया। इस हमले के कारण ध्यानचंद को मैदान से बाहर ले जाया गया और उन्हें उपचार की आवश्यकता पड़ी।

2) थोड़ी देर बाद मैं पट्टी बाँधकर फिर मैदान में आ पहुँचा।

क) चोट लगने के बाद ध्यानचंद ने क्या निर्णय लिया?
उत्तर: चोट लगने के बाद ध्यानचंद ने हिम्मत नहीं हारी और सिर पर पट्टी बाँधकर थोड़ी देर बाद ही फिर से मैदान में खेलने के लिए लौट आए। उन्होंने अपने साहस से टीम का मनोबल बढ़ाया।

ख) ध्यानचंद ने उस खिलाड़ी से क्या कहा जिसने उन्हें चोट पहुँचाई थी?
उत्तर: ध्यानचंद ने उस खिलाड़ी की पीठ पर हाथ रखकर कहा, “तुम चिंता मत करो, मैं इसका बदला ज़रूर लूँगा।” यह सुनकर वह खिलाड़ी घबरा गया और पूरे खेल में तनाव में रहा।

ग) उस खिलाड़ी की प्रतिक्रिया क्या थी?
उत्तर: ध्यानचंद के बदला लेने की बात सुनकर वह खिलाड़ी बेहद घबरा गया और खेल के दौरान लगातार ध्यानचंद पर नज़र बनाए रखा, यह सोचकर कि कहीं वे उन्हें चोट न पहुँचा दें।

घ) ध्यानचंद ने अपना बदला कैसे लिया?
उत्तर: ध्यानचंद ने खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हुए एक के बाद एक चार गोल कर दिए, जिससे उनकी टीम ने मैच जीत लिया। उन्होंने अपने शानदार खेल से अपना बदला पूरा किया।

3) मुझे ही देखिए। मेरा जन्म 1905 में प्रयाग के एक साधारण राजपूत परिवार में हुआ।

क) ध्यानचंद का बचपन कहाँ बीता और उनका परिवार कहाँ बस गया?
उत्तर: ध्यानचंद का जन्म 1905 में प्रयाग (इलाहाबाद) में एक साधारण राजपूत परिवार में हुआ। बाद में उनका परिवार झाँसी में बस गया, जहाँ उन्होंने अपना बचपन और किशोरावस्था बिताई।

ख) ध्यानचंद ने सेना में कब और कैसे प्रवेश किया?
उत्तर: 16 वर्ष की आयु में, ध्यानचंद ‘फर्स्ट ब्राह्मण रेजिमेंट’ में एक साधारण सिपाही के रूप में सेना में भर्ती हो गए।

ग) हॉकी के प्रति ध्यानचंद की रुचि कैसे विकसित हुई?
उत्तर: शुरुआत में हॉकी में उनकी विशेष रुचि नहीं थी, लेकिन उनकी रेजिमेंट का हॉकी में अच्छा नाम था। सूबेदार मेजर तिवारी के प्रोत्साहन और नियमित अभ्यास के कारण उनकी हॉकी में रुचि बढ़ी और वे एक कुशल खिलाड़ी बन गए।

घ) ध्यानचंद ने अपने खेल कौशल को कैसे निखारा?
उत्तर: लगातार अभ्यास और समर्पण से ध्यानचंद ने अपने खेल में निखार लाया। रेजिमेंट के साथियों के साथ खेलते हुए और वरिष्ठ अधिकारियों के मार्गदर्शन में उन्होंने अपनी प्रतिभा को विकसित किया।

4) सन 1936 में बर्लिन ओलंपिक में मुझे टीम का कप्तान बनाया गया।

क) 1936 के बर्लिन ओलंपिक में ध्यानचंद को कौन सी ज़िम्मेदारी सौंपी गई?
उत्तर: सन् 1936 में बर्लिन ओलंपिक के दौरान ध्यानचंद को भारतीय हॉकी टीम का कप्तान नियुक्त किया गया। यह उनके करियर का एक महत्वपूर्ण सम्मान और ज़िम्मेदारी थी।

ख) लोगों ने ध्यानचंद को किस उपाधि से सम्मानित किया और क्यों?
उत्तर: बर्लिन ओलंपिक में उनके अद्भुत खेल से प्रभावित होकर लोगों ने उन्हें “हॉकी का जादूगर” की उपाधि दी। उनके खेल की शैली और कौशल ने दुनियाभर के दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

ग) हिटलर ने ध्यानचंद के बारे में क्या प्रस्ताव रखा था?
उत्तर: हिटलर ने उनके खेल से प्रभावित होकर अपने अधिकारियों से कहा कि यदि ध्यानचंद जर्मनी आएँ, तो वह उन्हें सेना में मार्शल का पद देंगे। यह उनके खेल कौशल का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान था।

घ) ध्यानचंद की खेल भावना और टीम के प्रति उनका दृष्टिकोण कैसा था?
उत्तर: ध्यानचंद हमेशा टीम भावना से खेलते थे। वे स्वयं गोल करने की बजाय गेंद को गोल के पास ले जाकर साथी खिलाड़ियों को पास देते थे ताकि वे गोल कर सकें। उनकी यह निस्वार्थ खेल भावना टीम की सफलता का आधार थी।

5) जैसे-जैसे मेरे खेल में निखार आता गया, वैसे-वैसे मुझे तरक्की भी मिलती गई।

क) ध्यानचंद के खेल में सुधार का उनकी सेना की पदोन्नति पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर: जैसे-जैसे ध्यानचंद के खेल में सुधार होता गया, उन्हें सेना में पदोन्नति भी मिलती गई। उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन ने उन्हें लांस नायक के पद तक पहुँचा दिया, जो उनके मेहनत और प्रतिभा का परिणाम था।

ख) ध्यानचंद की खेल शैली का मुख्य विशेषता क्या थी?
उत्तर: ध्यानचंद की खेल शैली की मुख्य विशेषता उनकी टीम भावना और निस्वार्थता थी। वे स्वयं गोल करने की बजाय साथी खिलाड़ियों को अवसर देते थे, जिससे टीम का मनोबल बढ़ता और सफलता मिलती।

ग) ध्यानचंद ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम कैसे रोशन किया?
उत्तर: बर्लिन ओलंपिक में अपने शानदार प्रदर्शन से ध्यानचंद ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम रोशन किया। उनकी नेतृत्व क्षमता और खेल कौशल ने भारत को हॉकी में विश्व पटल पर स्थापित किया।

घ) ध्यानचंद की कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर: ध्यानचंद की कहानी से हमें मेहनत, समर्पण और खेल भावना का महत्त्व पता चलता है। यह दिखाता है कि निस्वार्थता और टीम के प्रति समर्पण से व्यक्ति न केवल सफलता प्राप्त करता है बल्कि दूसरों के लिए प्रेरणास्त्रोत भी बनता है।

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