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समास

समास क्या है?

‘समास’ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – सम् + आस्

  • ‘सम्’ का अर्थ है ‘अच्छी तरह’ या ‘पास’।
  • ‘आस्’ का अर्थ है ‘बैठना’ या ‘रखना’।

इस तरह, समास का शाब्दिक अर्थ होता है संक्षिप्तीकरण’ या पास-पास रखना’

व्याकरण में, जब दो या दो से अधिक शब्दों को मिलाकर उनके बीच के विभक्ति-चिह्नों (जैसे – का, के, की, में, पर, के लिए, और, या) को हटाकर एक नया, संक्षिप्त और सार्थक शब्द बनाया जाता है, तो उस प्रक्रिया को समास कहते हैं।

आसान शब्दों में, यह शब्दों को छोटा और प्रभावशाली बनाने का एक तरीका है।

उदाहरण के लिए:

  • रसोई के लिए घर कहने की बजाय हम संक्षिप्त रूप में रसोईघर कहते हैं।
  • घोड़े पर सवार कहने की बजाय हम घुड़सवार कहते हैं।
  • देश का भक्त कहने की बजाय हम देशभक्त कहते हैं।

इस प्रक्रिया से भाषा अधिक सुंदर और प्रभावशाली लगती है।

समास प्रक्रिया के मुख्य अंग

समास को समझने के लिए इन चार बातों को जानना बहुत ज़रूरी है:

  1. समस्तपद (या सामासिक शब्द): समास की प्रक्रिया से जो नया शब्द बनता है, उसे समस्तपद कहते हैं।
    • उदाहरण: गंगा का जल से बना नया शब्द गंगाजल’ एक समस्तपद है।
  2. समास-विग्रह: जब हम समस्तपद को वापस उसके मूल रूप में तोड़कर उनके आपसी संबंध को स्पष्ट करते हैं, तो उस प्रक्रिया को समास-विग्रह कहते हैं।
    • उदाहरण: गंगाजल’ का समास-विग्रह है गंगा का जल।
  3. पूर्वपद: समस्तपद के पहले वाले शब्द (पद) को पूर्वपद कहते हैं।
    • उदाहरण: ‘गंगाजल’ में गंगा’ पूर्वपद है।
  4. उत्तरपद: समस्तपद के बाद वाले (दूसरे) शब्द (पद) को उत्तरपद कहते हैं।
    • उदाहरण: ‘गंगाजल’ में जल’ उत्तरपद है।

आइए इसे एक तालिका से समझें:

उदाहरण 1: राजकुमार उदाहरण 2: नीलकमल
समस्तपद राजकुमार नीलकमल
समास-विग्रह राजा का कुमार नीला है जो कमल
पूर्वपद राज (राजा) नील (नीला)
उत्तरपद कुमार कमल
समास का मूल आधार

समास का पूरा अध्ययन इसी बात पर आधारित है कि जब दो शब्द मिलते हैं, तो उनमें से किस पद का अर्थ प्रधान (मुख्य) है।

  • क्या पहला पद (पूर्वपद) प्रधान है? (जैसे अव्ययीभाव में)
  • क्या दूसरा पद (उत्तरपद) प्रधान है? (जैसे तत्पुरुष, कर्मधारय, द्विगु में)
  • क्या दोनों पद प्रधान हैं? (जैसे द्वंद्व में)
  • या दोनों में से कोई भी प्रधान नहीं है, बल्कि कोई तीसरा ही अर्थ निकल रहा है? (जैसे बहुव्रीहि में)

इसी प्रधानता के आधार पर समास के 6 मुख्य भेद किए गए हैं, जिन्हें हम एक-एक करके पढ़ रहे हैं।

भाषा में समास की आवश्यकता क्यों है? (Why is Samas needed?)

किसी भी भाषा में समास जैसी प्रक्रियाओं का विकास कई कारणों से होता है:

  • संक्षिप्तता (Brevity): समास भाषा को संक्षिप्त बनाता है। चक्र को धारण करने वाला है जो इतना लंबा कहने के बजाय चक्रधर कहना अधिक प्रभावी है।
  • प्रवाह और लय (Flow and Rhythm): सामासिक शब्दों के प्रयोग से भाषा में एक सहज प्रवाह और संगीतात्मक लय आती है, जो गद्य और पद्य दोनों को सुंदर बनाती है।
  • अर्थ की गहनता (Depth of Meaning): समास के द्वारा बने शब्द कई बार अपने मूल शब्दों से भी अधिक गहरा और विशेष अर्थ देते हैं। जैसे पंकज (पंक में जन्म लेने वाला) का अर्थ केवल कीचड़ में जन्मी हर वस्तु नहीं, बल्कि विशेष रूप से ‘कमल’ होता है।
  • नवीन शब्दों का निर्माण (Creation of New Vocabulary): समास नए-नए शब्दों को गढ़ने की एक शक्तिशाली प्रक्रिया है, जिससे भाषा का शब्द-भंडार समृद्ध होता है।
समास और संधि में मौलिक अंतर (Fundamental Difference between Samas and Sandhi)

अक्सर लोग समास और संधि को लेकर भ्रमित हो जाते हैं। दोनों में मुख्य अंतर इस प्रकार हैं:

आधार संधि (Joining of Sounds) समास (Joining of Words)
परिभाषा दो वर्णों (sounds/letters) के मेल से जो ध्वनि-परिवर्तन होता है, उसे संधि कहते हैं। दो या अधिक पदों (words) के मेल से जो नया शब्द बनता है, उसे समास कहते हैं।
क्या जुड़ता है? इसमें वर्ण (स्वर/व्यंजन) जुड़ते हैं। इसमें सार्थक शब्द/पद जुड़ते हैं।
विभाजन संधि को तोड़ने की क्रिया को विच्छेद कहते हैं। (जैसे- विद्यालय = विद्या + आलय) समास को तोड़ने की क्रिया को विग्रह कहते हैं। (जैसे- रसोईघर = रसोई के लिए घर)
मुख्य तत्व संधि में ध्वनि और वर्ण का महत्व है। समास में अर्थ का महत्व है।
अपरिहार्यता संधि में वर्णों का मेल होने पर ध्वनि-परिवर्तन होना अनिवार्य है। समास में शब्दों के बीच विभक्ति या योजक शब्द का लोप होना अनिवार्य है।

समास के भेद

तत्पुरुष समास (Tatpurush Samas)

परिभाषा: तत्पुरुष समास वह समास होता है जिसमें दूसरा पद (उत्तरपद) प्रधान होता है और पहला पद (पूर्वपद) गौण (secondary) होता है।

इसकी सबसे बड़ी पहचान यह है कि समस्तपद बनाते समय दोनों पदों के बीच आने वाले कारक चिह्नों (विभक्तियों) का लोप हो जाता है, यानी वे अदृश्य हो जाते हैं। जब हम इसका विग्रह करते हैं, तो वही छिपे हुए कारक चिह्न फिर से प्रकट हो जाते हैं।

उदाहरण के लिए, राजा का पुत्र में से का विभक्ति का लोप होकर राजपुत्र’ शब्द बनता है। यहाँ ‘पुत्र’ (उत्तरपद) प्रधान है, क्योंकि बात ‘राजा’ की नहीं, बल्कि ‘पुत्र’ की हो रही है।

तत्पुरुष समास को पहचानने की तकनीकें:

  1. उत्तरपद की प्रधानता: समस्तपद का मुख्य अर्थ हमेशा दूसरे पद पर निर्भर करता है। जैसे – ‘रसोईघर’ में ‘घर’ मुख्य है, ‘रसोई’ तो केवल उस घर की विशेषता बता रही है। वाक्य में प्रयोग करके देखें – “रसोईघर बड़ा है।” यहाँ क्रिया ‘बड़ा है’ घर के लिए आई है, रसोई के लिए नहीं।
  2. विग्रह करने पर कारक चिह्न का आना: यह सबसे निश्चित पहचान है। जब भी आप समस्तपद को तोड़ेंगे (विग्रह करेंगे), तो बीच में को, से, के द्वारा, के लिए, का, के, की, में, पर में से कोई न कोई कारक चिह्न अवश्य आएगा।
  3. लिंग और वचन उत्तरपद के अनुसार: समस्तपद का लिंग (Gender) और वचन (Number) हमेशा उत्तरपद के अनुसार ही होता है। जैसे – राजा का महल = राजमहल (पुल्लिंग, क्योंकि महल पुल्लिंग है)। राजा की कुमारी = राजकुमारी (स्त्रीलिंग, क्योंकि कुमारी स्त्रीलिंग है)।
  4. पहला पद संज्ञा या विशेषण: इसमें प्रायः पहला पद (पूर्वपद) संज्ञा या विशेषण होता है, जो दूसरे पद की विशेषता या उससे संबंध बताता है।

तत्पुरुष समास के भेद

चूंकि इस समास की रचना कारक चिह्नों के लोप होने से होती है, इसलिए जिस कारक चिह्न का लोप होता है, उसी के नाम पर उस तत्पुरुष समास का भेद हो जाता है। कर्ता और संबोधन कारक को छोड़कर, इसके 6 मुख्य भेद होते हैं:

  1. कर्म तत्पुरुष (‘को’ का लोप)
  2. करण तत्पुरुष (‘से’, ‘के द्वारा’ का लोप)
  3. संप्रदान तत्पुरुष (‘के लिए’ का लोप)
  4. अपादान तत्पुरुष (‘से’ [अलग होने के अर्थ में] का लोप)
  5. संबंध तत्पुरुष (‘का’, ‘के’, ‘की’ का लोप)
  6. अधिकरण तत्पुरुष (‘में’, ‘पर’ का लोप)
तत्पुरुष समास: 50 उदाहरण, विग्रह और भेद
क्रम समस्तपद समास-विग्रह भेद
कर्म तत्पुरुष (“को” का लोप)
1 यशप्राप्त यश को प्राप्त कर्म तत्पुरुष
2 गगनचुंबी गगन को चूमने वाला कर्म तत्पुरुष
3 चिड़ीमार चिड़िया को मारने वाला कर्म तत्पुरुष
4 जेबकतरा जेब को कतरने वाला कर्म तत्पुरुष
5 स्वर्गगत स्वर्ग को गया हुआ कर्म तत्पुरुष
6 ग्रामगत ग्राम को गया हुआ कर्म तत्पुरुष
7 रथचालक रथ को चलाने वाला कर्म तत्पुरुष
8 मनोहर मन को हरने वाला कर्म तत्पुरुष
करण तत्पुरुष (“से/के द्वारा” का लोप)
9 हस्तलिखित हस्त से लिखित करण तत्पुरुष
10 तुलसीकृत तुलसी द्वारा कृत करण तत्पुरुष
11 शोकाकुल शोक से आकुल करण तत्पुरुष
12 रेखांकित रेखा द्वारा अंकित करण तत्पुरुष
13 मनगढ़ंत मन से गढ़ा हुआ करण तत्पुरुष
14 भयाकुल भय से आकुल करण तत्पुरुष
15 ईश्वरप्रदत्त ईश्वर द्वारा प्रदत्त करण तत्पुरुष
16 मदांध मद से अंधा करण तत्पुरुष
संप्रदान तत्पुरुष (“के लिए” का लोप)
17 रसोईघर रसोई के लिए घर संप्रदान तत्पुरुष
18 सत्याग्रह सत्य के लिए आग्रह संप्रदान तत्पुरुष
19 विद्यालय विद्या के लिए आलय संप्रदान तत्पुरुष
20 गौशाला गायों के लिए शाला संप्रदान तत्पुरुष
21 देशभक्ति देश के लिए भक्ति संप्रदान तत्पुरुष
22 स्नानघर स्नान के लिए घर संप्रदान तत्पुरुष
23 हथकड़ी हाथ के लिए कड़ी संप्रदान तत्पुरुष
24 प्रयोगशाला प्रयोग के लिए शाला संप्रदान तत्पुरुष
अपादान तत्पुरुष (“से” [अलगाव] का लोप)
25 ऋणमुक्त ऋण से मुक्त अपादान तत्पुरुष
26 पथभ्रष्ट पथ से भ्रष्ट अपादान तत्पुरुष
27 देशनिकाला देश से निकाला अपादान तत्पुरुष
28 धनहीन धन से हीन अपादान तत्पुरुष
29 पापमुक्त पाप से मुक्त अपादान तत्पुरुष
30 जन्मांध जन्म से अंधा अपादान तत्पुरुष
31 गुणहीन गुण से हीन अपादान तत्पुरुष
32 रोगमुक्त रोग से मुक्त अपादान तत्पुरुष
संबंध तत्पुरुष (“का/के/की” का लोप)
33 राजपुत्र राजा का पुत्र संबंध तत्पुरुष
34 गंगाजल गंगा का जल संबंध तत्पुरुष
35 लोकतंत्र लोक का तंत्र संबंध तत्पुरुष
36 घुड़दौड़ घोड़ों की दौड़ संबंध तत्पुरुष
37 सेनापति सेना का स्वामी संबंध तत्पुरुष
38 राष्ट्रपति राष्ट्र का स्वामी संबंध तत्पुरुष
39 पराधीन दूसरे के अधीन संबंध तत्पुरुष
40 भारतवासी भारत के वासी संबंध तत्पुरुष
41 जीवनसाथी जीवन का साथी संबंध तत्पुरुष
42 मंत्रीपरिषद् मंत्रियों की परिषद् संबंध तत्पुरुष
अधिकरण तत्पुरुष (“में/पर” का लोप)
43 आपबीती आप पर बीती अधिकरण तत्पुरुष
44 वनवास वन में वास अधिकरण तत्पुरुष
45 घुड़सवार घोड़े पर सवार अधिकरण तत्पुरुष
46 लोकप्रिय लोक में प्रिय अधिकरण तत्पुरुष
47 जलमग्न जल में मग्न अधिकरण तत्पुरुष
48 गृहप्रवेश गृह में प्रवेश अधिकरण तत्पुरुष
49 पुरुषोत्तम पुरुषों में उत्तम अधिकरण तत्पुरुष
50 आत्मनिर्भर आत्म पर निर्भर अधिकरण तत्पुरुष

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