मेरी समझ से (पृष्ठ 49)
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उपयुक्त उत्तर के सम्मुख तारा (*) बनाइए।
- “सज्जन ऐसे कि पत्थर मारने से फल देते हैं” का क्या अर्थ है?
- लेखक के अनुसार सज्जन लोग बिना पूछे स्वादिष्ट रसीले फल देते हैं।
- लेखक फलदार वृक्षों की उदारता को मानवीय रूप में व्यक्त कर रहे हैं।*
- लेखक का मानना था कि हरिद्वार के सभी दुकानदार बहुत सज्जन थे।
- लेखक को पत्थर मारकर पके हुए फल तोड़कर खाना पसंद था।
- “वैराग्य और भक्ति का उदय होता था” इस कथन से लेखक का कौन-सा भाव प्रकट होता है?
- शारीरिक थकान और मानसिक बेचैनी
- मानसिक शांति और आध्यात्मिक अनुभव*
- आर्थिक संतोष और मानसिक विकास
- सामाजिक सद्भाव और पारिवारिक प्रेम
- “पत्थर पर का भोजन का सुख सोने की थाल से बढ़कर था” इस वाक्य का सर्वाधिक उपयुक्त निष्कर्ष क्या है?
- संतुष्टि में सुख होता है।*
- सुखी लोग पत्थर पर भोजन करते हैं।
- लेखक के पास सोने की थाली नहीं थी।
- पत्थर पर रखा भोजन अधिक स्वादिष्ट होता है।
- “एक दिन मैंने श्री गंगा जी के तट पर रसोई करके पत्थर ही पर जल के अत्यंत निकट परोसकर भोजन किया।” यह प्रसंग किस मूल्य को बढ़ावा देता है?
- अंधविश्वास और लालच
- मानवता और देशप्रेम
- सादगी और आत्मनिर्भरता*
- स्वच्छता और प्रकृति प्रेम* (इस प्रश्न के दो उत्तर सही हो सकते हैं।)
- लेखक का हरिद्वार अनुभव मुख्यतः किस प्रकार का था?
- राजनीतिक
- आध्यात्मिक*
- सामाजिक
- प्राकृतिक* (इस प्रश्न के दो उत्तर सही हो सकते हैं।)
- पत्र की भाषा का एक मुख्य लक्षण क्या है?
- कठिन शब्दों का प्रयोग और बोझिलता
- मुहावरों का अधिक प्रयोग
- सरलता और चित्रात्मकता*
- जटिलता और संक्षिप्तता
मिलकर करें मिलान (पृष्ठ 50)
पाठ से चुनकर कुछ शब्द नीचे दिए गए हैं। आपस में चर्चा कीजिए और इनके उपयुक्त संदर्भों से इनका मिलान कीजिए-
शब्द | सही मिलान |
1. हरिद्वार | 3. यह भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित एक प्रसिद्ध तीर्थस्थान है। यहाँ से गंगा पहाड़ों को छोड़कर मैदान में आती है। |
2. गंगा | 5. यह भारतवर्ष की एक प्रधान नदी है जो हिमालय से निकलकर…बंगाल की खाड़ी में गिरती है…। |
3. भगीरथ | 6. ये अयोध्या के प्रसिद्ध सूर्यवंशी राजा थे। कहा जाता है कि ये घोर तपस्या करके गंगा को पृथ्वी पर लाए थे…। |
4. चण्डिका | 1. मान्यताओं के अनुसार दुर्गा का एक रूप। |
5. भागवत | 2. यह अठारह पुराणों में से सर्वप्रसिद्ध एक पुराण है। इसमें अधिकांश श्री कृष्ण संबंधी कथाएँ हैं। |
6. दालचीनी | 4. यह एक पेड़ का नाम है…। इस पेड़ की सुगंधित छाल दवा और मसाले के काम में आती है…। |
मिलकर करें चयन (पृष्ठ 51)
(क) पाठ से चुनकर कुछ वाक्य नीचे दिए गए हैं। प्रत्येक वाक्य के सामने दो-दो निष्कर्ष दिए गए हैं- एक सही और एक भ्रामक। अपने समूह में इन पर विचार कीजिए और उपयुक्त निष्कर्ष पर सही का चिह्न (✓) लगाइए।
- पंक्ति: पर्वतों पर अनेक प्रकार की वल्ली हरी-भरी सज्जनों के शुभ मनोरथों की भाँति फैलकर लहलहा रही है।
- सही निष्कर्ष: लताओं का फैलना सज्जनों की शुभ इच्छाओं की तरह सौम्यता और सुंदरता को दर्शाता है। (✓)
- पंक्ति: बड़े-बड़े वृक्ष भी ऐसे खड़े हैं मानो एक पैर से खड़े तपस्या करते हैं और साधुओं की भाँति घाम, ओस और वर्षा अपने ऊपर सहते हैं।
- सही निष्कर्ष: वृक्षों की स्थिति साधुओं जैसी है जो हर मौसम को सहते हुए तपस्या करते हैं। (✓)
- पंक्ति: इन वृक्षों पर अनेक रंग के पक्षी चहचहाते हैं और नगर के दुष्ट बधिकों से निडर होकर कल्लोल करते हैं।
- सही निष्कर्ष: यहाँ के पक्षी प्रकृति में सुरक्षित अनुभव करते हैं, इसलिए वे निडर होकर कल्लोल करते हैं। (✓)
- पंक्ति: जल यहाँ का अत्यंत शीतल है और मिष्ट भी वैसा ही है मानो चीनी के पने को बरफ में जमाया है।
- सही निष्कर्ष: गंगाजल की ठंडक और मिठास का अनुभव बहुत मनोहारी है। (✓)
- पंक्ति: एक दिन मैंने श्री गंगा जी के तट पर रसोई करके पत्थर ही पर जल के अत्यंत निकट परोसकर भोजन किया।
- सही निष्कर्ष: लेखक ने गंगा के समीप बैठकर भोजन किया, जिससे उनकी प्रकृति से निकटता झलकती है। (✓)
- पंक्ति: निश्चय है कि आप इस पत्र को स्थानदान दीजिएगा।
- सही निष्कर्ष: लेखक चाहता है कि पत्र को महत्व देकर प्रकाशित किया जाए। (✓)
पंक्तियों पर चर्चा (पृष्ठ 52)
(क) “यहाँ की कुशा सबसे विलक्षण होती है जिसमें से दालचीनी, जावित्री इत्यादि की अच्छी सुगंध आती है। मानो यह प्रत्यक्ष प्रगट होता है कि यह ऐसी पुण्यभूमि है कि यहाँ की घास भी ऐसी सुगंधमय है।” उत्तर: इस पंक्ति का अर्थ है कि हरिद्वार की भूमि इतनी पवित्र और विशेष है कि वहाँ उगने वाली साधारण घास (कुशा) भी असाधारण है। उसमें से दालचीनी और जावित्री जैसे मसालों की सुगंध आती है। लेखक यह कहना चाहते हैं कि इस पवित्र स्थान का प्रभाव वहाँ की निर्जीव वस्तुओं पर भी पड़ता है, जिससे वे भी दिव्य और सुगंधित हो जाती हैं।
(ख) “अहा! इनके जन्म भी धन्य हैं जिनसे अर्थी विमुख जाते ही नहीं। फल, फूल, गंध, छाया, पत्ते, छाल, बीज, लकड़ी और जड़; यहाँ तक कि जले पर भी कोयले और राख से लोगों का मनोर्थ पूर्ण करते हैं।” उत्तर: इस पंक्ति में लेखक वृक्षों की महानता और परोपकार की भावना का वर्णन कर रहे हैं। वे कहते हैं कि वृक्षों का जीवन धन्य है क्योंकि वे अपने हर अंग से दूसरों की मदद करते हैं। कोई भी उनसे खाली हाथ नहीं लौटता। वे फल, फूल, छाया से लेकर अपनी जड़ और लकड़ी तक सब कुछ दूसरों को दे देते हैं। यहाँ तक कि जलने के बाद भी वे कोयले और राख के रूप में लोगों के काम आते हैं।
सोच-विचार के लिए (पृष्ठ 52)
(क) “और संपादक महाशय, मैं चित्त से तो अब तक वहीं निवास करता हूँ…” लेखक का यह वाक्य क्या दर्शाता है? क्या आपने कभी किसी स्थान को छोड़कर ऐसा अनुभव किया है? कब-कब? उत्तर: लेखक का यह वाक्य दर्शाता है कि हरिद्वार की यात्रा का उनके मन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा है। भले ही वे शारीरिक रूप से वहाँ से लौट आए हैं, लेकिन उनका मन और उनकी यादें अभी भी हरिद्वार की सुंदरता और शांति में ही खोई हुई हैं। हाँ, मैंने भी ऐसा अनुभव किया है। जब मैं अपनी गर्मी की छुट्टियों में अपने गाँव गया था, तो वहाँ के शांत वातावरण, हरे-भरे खेतों और अपने पुराने दोस्तों के साथ बिताए पलों को मैं शहर लौटने के कई दिनों बाद तक याद करता रहा। मेरा मन बार-बार वहीं जाने को करता था।
(ख) “पंडे भी यहाँ बड़े विलक्षण संतोषी हैं। एक पैसे को लाख करके मान लेते हैं।” लेखक का यह कथन आज के समाज में कितना सच है? क्या अब भी ऐसे संतोषी लोग मिलते हैं? अपने विचार उदाहरण सहित लिखिए। उत्तर: लेखक का यह कथन आज के समाज में बहुत कम सच है। उस समय लेखक ने पंडों पर व्यंग्य किया था कि वे थोड़े से दान को भी बहुत मानकर संतुष्ट हो जाते हैं। आज के समय में तीर्थ स्थानों पर या सामान्य जीवन में भी इतने संतोषी लोग मिलना बहुत मुश्किल है। आजकल ज़्यादातर लोग अधिक से अधिक धन कमाना चाहते हैं। उदाहरण के लिए, कई तीर्थ स्थानों पर पंडे और दुकानदार पर्यटकों से ज़्यादा पैसे लेने की कोशिश करते हैं और थोड़े में संतुष्ट नहीं होते।
(ग) “मैं दीवान कृपा राम के घर के ऊपर के बंगले पर टिका था। यह स्थान भी उस क्षेत्र में टिकने योग्य ही है।” आपके विचार से लेखक ने उस स्थान को ‘टिकने योग्य‘ क्यों कहा है? उत्तर: मेरे विचार से लेखक ने उस स्थान को ‘टिकने योग्य’ इसलिए कहा क्योंकि वह स्थान बहुत सुंदर और आरामदायक रहा होगा। बंगले के ऊपर होने के कारण वहाँ से हरिद्वार का सुंदर दृश्य दिखाई देता होगा। जैसा कि लेखक ने बताया कि “चारों ओर से शीतल पवन आती थी,” इससे पता चलता है कि वह स्थान प्राकृतिक रूप से बहुत सुखद था, जो किसी भी यात्री के लिए ठहरने का एक आदर्श स्थान होता है।
(घ) “फल, फूल, गंध, छाया, पत्ते, छाल, बीज, लकड़ी और जड़; यहाँ तक कि जले पर भी कोयले और राख से लोगों का मनोर्थ पूर्ण करते हैं।” इस वाक्य के माध्यम से आपको वृक्षों के महत्व के बारे में कौन-कौन सी बातें सूझ रही हैं? उत्तर: इस वाक्य से वृक्षों के महत्व के बारे में निम्नलिखित बातें सूझ रही हैं:
- परोपकार: वृक्ष अपने हर हिस्से से दूसरों का भला करते हैं।
- भोजन: वे हमें फल और बीज देते हैं।
- दवा: उनकी छाल, पत्ते और जड़ें औषधियों के काम आती हैं।
- ईंधन और आश्रय: वे हमें जलाने के लिए लकड़ी और घर बनाने के लिए भी लकड़ी देते हैं।
- पर्यावरण: वे हमें छाया, सुगंध और शुद्ध हवा देते हैं।
- निस्वार्थ सेवा: वे अपने जीवनकाल में और मृत्यु के बाद भी (कोयले और राख के रूप में) मनुष्य के काम आते हैं।
अनुमान और कल्पना से (पृष्ठ 52-53)
(क) “यह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-हरे पर्वतों से घिरी है।” कल्पना कीजिए कि आप हरिद्वार में हैं। आप वहाँ क्या-क्या करना चाहेंगे? उत्तर: अगर मैं हरिद्वार में होता, तो मैं ये सब करना चाहूँगा:
- सबसे पहले मैं हर की पैड़ी पर जाकर गंगा जी में स्नान करूँगा।
- शाम के समय गंगा आरती का अद्भुत दृश्य देखूँगा।
- मनसा देवी और चंडी देवी मंदिर के दर्शन करने के लिए रोपवे से जाऊँगा।
- गंगा के किनारे शांत बैठकर बहते हुए जल की आवाज़ सुनूँगा और प्रकृति की सुंदरता का आनंद लूँगा।
- वहाँ के स्थानीय बाज़ारों में घूमूँगा और स्वादिष्ट भोजन का आनंद लूँगा।
(ख) “जल के छलके पास ही ठंढे-ठंढे आते थे।” कल्पना कीजिए कि आप गंगा के तट पर हैं और पानी के छींटे आपके मुँह पर आ रहे हैं। अपने अनुभवों को अपनी कल्पना से लिखिए। उत्तर: मैं गंगा के किनारे एक पत्थर पर बैठा हूँ। सूरज की हल्की धूप मेरे ऊपर पड़ रही है। गंगा का पवित्र जल तेज़ी से बह रहा है और पत्थरों से टकराकर मधुर संगीत उत्पन्न कर रहा है। अचानक, ठंडे पानी का एक छींटा मेरे चेहरे पर पड़ता है। वह इतना ठंडा और ताज़गी भरा है कि मेरी सारी थकान दूर हो जाती है। ऐसा लगता है मानो माँ गंगा मुझे अपना आशीर्वाद दे रही हों। मेरा मन खुशी और शांति से भर जाता है।
(ग) “सज्जन ऐसे कि पत्थर मारने से फल देते हैं।” यदि पेड़-पौधे सच में मनुष्यों की तरह व्यवहार करने लगें तो क्या होगा? उत्तर: यदि पेड़-पौधे सच में मनुष्यों की तरह व्यवहार करने लगें तो दुनिया बहुत बदल जाएगी। शायद वे हमसे बात करते, अपनी खुशी और अपना दुख बताते। जब कोई उन्हें काटता तो वे रोते और चिल्लाते। हो सकता है कि वे उन लोगों को फल और छाया देने से मना कर देते जो उन्हें नुकसान पहुँचाते हैं। इससे शायद हम मनुष्य उनकी कीमत ज़्यादा समझने लगते और उनका बेहतर तरीके से ख्याल रखते।
(घ) “यहाँ पर श्री गंगा जी दो धारा हो गई हैं- एक का नाम नील धारा, दूसरी श्री गंगा जी ही के नाम से।” इस पाठ में ‘गंगा‘ शब्द के साथ ‘श्री‘ और ‘जी‘ लगाया गया है। आपके अनुसार उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा? उत्तर: मेरे अनुसार, लेखक ने ‘गंगा’ शब्द के साथ ‘श्री’ और ‘जी’ का प्रयोग उनके प्रति अपना आदर और श्रद्धा प्रकट करने के लिए किया है। भारत में नदियों को केवल पानी का स्रोत नहीं माना जाता, बल्कि उन्हें माँ और देवी के रूप में पूजा जाता है। ‘श्री’ और ‘जी’ जैसे सम्मानसूचक शब्द लगाकर लेखक गंगा नदी को एक पूजनीय देवी के रूप में संबोधित कर रहे हैं।
(ङ) कल्पना कीजिए कि आप हरिद्वार एक श्रवणबाधित या दृष्टिबाधित व्यक्ति के साथ गए हैं। उसकी यात्रा को अच्छा बनाने के लिए कुछ सुझाव दीजिए। उत्तर:
- दृष्टिबाधित व्यक्ति के लिए: मैं हर दृश्य का बोलकर वर्णन करूँगा, जैसे- पहाड़ों का रंग, गंगा के पानी की चमक, मंदिरों की बनावट। मैं उन्हें गंगा के ठंडे पानी को छूकर और बहते जल की आवाज़ सुनकर महसूस करने में मदद करूँगा। मैं उनका हाथ पकड़कर सुरक्षित रूप से घुमाऊँगा।
- श्रवणबाधित व्यक्ति के लिए: मैं उनसे सांकेतिक भाषा में या लिखकर संवाद करूँगा। आरती के समय लोगों की भक्ति और दीयों की सुंदरता दिखाकर उन्हें उस माहौल का अनुभव कराऊँगा। मैं यह सुनिश्चित करूँगा कि वे हर जानकारी को देख और समझ सकें।
लिखें संवाद (पृष्ठ 53)
(क) “मेरे संग कल्लू जी मित्र भी परमानंदी थे।” लेखक और कल्लू जी के बीच हरिद्वार यात्रा पर एक काल्पनिक संवाद लिखिए। उत्तर: लेखक: कल्लू जी, देखिए तो ज़रा! इन पहाड़ों की हरियाली देखकर मन कितना प्रसन्न हो रहा है। कल्लू जी: सच कहा मित्र! और यह गंगा की कलकल ध्वनि! ऐसा लगता है मानो कानों में अमृत घुल रहा हो। यहाँ आकर सारी चिंताएँ दूर हो गईं। लेखक: हाँ, बिलकुल! मेरा तो मन कर रहा है कि यहीं बस जाऊँ। आज गंगा तट पर ही रसोई बनाकर भोजन करेंगे। पत्थर पर बैठकर खाने का आनंद ही कुछ और होगा। कल्लू जी: वाह! यह तो बहुत ही अच्छा विचार है। प्रकृति के इतने करीब बैठकर भोजन करने का सुख महलों में भी नहीं मिल सकता। सच में, आप परमानंदी हैं और आपकी संगति में मैं भी परमानंदी हो गया हूँ!
(ख) “यह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-हरे पर्वतों से घिरी है।” लेखक और प्रकृति के बीच एक कल्पनात्मक संवाद तैयार कीजिए- जैसे पर्वत बोल रहे हों। उत्तर: लेखक: (पहाड़ों को देखकर) वाह! कितने सुंदर और विशाल हो तुम! हरे-भरे वस्त्र पहने किसी तपस्वी की तरह लग रहे हो। पर्वत: (धीमी, गंभीर आवाज़ में) धन्यवाद, यात्री। हम सदियों से यहीं खड़े हैं, इस पवित्र भूमि की रक्षा करते हुए। लेखक: तुम्हारी गोद में ये वृक्ष और लताएँ कितनी सुखी हैं। यह सब देखकर मेरा मन निर्मल हो गया। पर्वत: हमने इन वृक्षों को अपनी संतान की तरह पाला है। ये हमारी ही तरह हर मौसम को सहते हैं और हमेशा दूसरों को देना सीखते हैं। तुम भी यहाँ से शांति और वैराग्य का संदेश लेकर जाओ।
‘है‘ और ‘हैं‘ का उपयोग (पृष्ठ 54)
अब ‘आदरार्थ बहुवचन‘ को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त शब्दों से रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
- प्रधानाचार्य जी विद्यालय में नहीं हैं। वे अभी सभा में उपस्थित हैं।
- माता-पिता हमारे जीवन के मार्गदर्शक होते हैं, हमें उनका कहना मानना चाहिए।
- मेरी बहन बाजार जा रही है। वह वहाँ से किताबें ले आएगी।
- बाहर फेरीवाला है। उसे बुला लाओ।
- डाकिया जी आए हैं। उन्हें भी बुला लाओ।
- आप तो बहुत दिन बाद आए हैं। आपका स्वागत है।
- डॉक्टर साहब बहुत विद्वान हैं। हमें उनसे परामर्श लेना चाहिए।
- आपके माता-पिता कहाँ हैं? क्या मैं उनसे मिल सकता हूँ?
- ये हमारे हिंदी के अध्यापक हैं। हम इनसे बहुत-कुछ सीखते-समझते हैं।
- बंदर पेड़ पर उछल-कूद कर रहा है।
भावों की पहचान (पृष्ठ 54-55)
नीचे कुछ पंक्तियाँ दी गई हैं। सोचिए कि इनमें कौन-सा भाव प्रकट हो रहा है? पहचानिए और चुनकर लिखिए-
- उस समय के पत्थर पर का भोजन का सुख सोने की थाल के भोजन से कहीं बढ़ के था। – संतोष
- चित्त में बारंबार ज्ञान, वैराग्य और भक्ति का उदय होता था। – भक्ति, वैराग्य, शांति
- पंडे भी यहाँ बड़े विलक्षण संतोषी हैं। – आश्चर्य, हास्य (व्यंग्य)
- हर तरफ पवित्रता और प्रसन्नता बिखरी हुई थी। – शांति, श्रद्धा
- सज्जन ऐसे कि पत्थर मारने से फल देते हैं। – परोपकार, करुणा
काल की पहचान (पृष्ठ 55)
(क) नीचे दी गई पाठ की इन पंक्तियों को पढ़कर बताइए, इनमें क्रिया कौन-से काल को प्रदर्शित कर रही है?
- निश्चय है कि आप इस पत्र को स्थानदान दीजिएगा। – भविष्य काल
- यह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-हरे पर्वतों से घिरी है। – वर्तमान काल
- वृक्ष ऐसे हैं कि पत्थर मारने से फल देते हैं। – वर्तमान काल
- चित्त में बारंबार ज्ञान, वैराग्य और भक्ति का उदय होता था। – भूतकाल
- मैं दीवान कृपा राम के घर के ऊपर के बंगले पर टिका था। – भूतकाल
(ख) अब इन वाक्यों के काल को अन्य कालों में बदलकर लिखिए और नए वाक्य बनाइए।
- मूल वाक्य: निश्चय है कि आप इस पत्र को स्थानदान दीजिएगा। (भविष्य)
- वर्तमान: आप इस पत्र को स्थानदान दे रहे हैं।
- भूतकाल: आपने इस पत्र को स्थानदान दिया था।
- मूल वाक्य: यह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-हरे पर्वतों से घिरी है। (वर्तमान)
- भूतकाल: यह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-हरे पर्वतों से घिरी थी।
- भविष्य: यह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-हरे पर्वतों से घिरी रहेगी।
- मूल वाक्य: वृक्ष ऐसे हैं कि पत्थर मारने से फल देते हैं। (वर्तमान)
- भूतकाल: वृक्ष ऐसे थे कि पत्थर मारने से फल देते थे।
- भविष्य: वृक्ष ऐसे होंगे कि पत्थर मारने से फल देंगे।
- मूल वाक्य: चित्त में बारंबार ज्ञान, वैराग्य और भक्ति का उदय होता था। (भूतकाल)
- वर्तमान: चित्त में बारंबार ज्ञान, वैराग्य और भक्ति का उदय होता है।
- भविष्य: चित्त में बारंबार ज्ञान, वैराग्य और भक्ति का उदय होगा।
- मूल वाक्य: मैं दीवान कृपा राम के घर के ऊपर के बंगले पर टिका था। (भूतकाल)
- वर्तमान: मैं दीवान कृपा राम के घर के ऊपर के बंगले पर टिका हूँ।
- भविष्य: मैं दीवान कृपा राम के घर के ऊपर के बंगले पर टिकूँगा।
पत्र की रचना (पृष्ठ 56)
नीचे इस पत्र की कुछ विशेषताएँ दी गई हैं। अपने समूह के साथ मिलकर इन विशेषताओं से जुड़े वाक्यों से इनका मिलान कीजिए-
क्रम | पत्र की विशेषताएँ | पत्र से उदाहरण (सही मिलान) |
1. | व्यक्तिपरकता | “ग्रहण में बड़े आनंदपूर्वक स्नान किया…” |
2. | संवादात्मकता | और संपादक महाशय, मैं चित्त से तो अब तक वहीं निवास करता हूँ… निश्चय है कि आप इस पत्र को स्थानदान दीजिएगा। |
3. | स्वाभाविक शैली | मुझे हरिद्वार का समाचार लिखने में बड़ा आनंद होता है… |
4. | व्यक्तिगत अनुभवों का वर्णन | एक दिन मैंने श्री गंगा जी के तट पर रसोई करके… |
5. | अभिवादन या संबोधन | श्रीमान कविवचन सुधा संपादक महामहिम मित्रवरेषु! |
6. | हस्ताक्षर | आपका मित्र यात्री |
7. | उपसंहार और निवेदन | और संपादक महाशय, मैं चित्त से तो अब तक वहीं निवास करता हूँ… |
8. | मुख्य विषय-वस्तु | हरिद्वार की प्राकृतिक सुंदरता… का अत्यंत विस्तार से वर्णन। जैसे- “यह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-हरे पर्वतों से घिरी है…” |