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Chap 5 : कबीर के दोहे

मेरी समझ से

प्रश्न (2) “अति का भला न बोलना अति का भला न चूप। अति का भला न बरसना अति की भली न धूप।।” इस दोहे का मूल संदेश क्या है?

  • हमेशा चुप रहने में ही हमारी भलाई है
  • बारिश और धूप से बचना चाहिए
  • हर परिस्थिति में संतुलन होना आवश्यक है
  • हमेशा मधुर वाणी बोलनी चाहिए

उत्तर: इस दोहे का मूल संदेश है कि हर परिस्थिति में संतुलन होना आवश्यक है

प्रश्न (3) “बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर। पंथी को छाया नहीं फल लागै अति दूर।।” यह दोहा किस जीवन कौशल को विकसित करने पर बल देता है?

  • समय का सदुपयोग करना
  • दूसरों के काम आना
  • परिश्रम और लगन से काम करना
  • सभी के प्रति उदार रहना

उत्तर: यह दोहा दूसरों के काम आने के जीवन कौशल को विकसित करने पर बल देता है।

प्रश्न (4) “ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय। औरन को सीतल करै आपहुँ सीतल होय ।।” इस दोहे के अनुसार मधुर वाणी बोलने का सबसे बड़ा लाभ क्या है?

  • लोग हमारी प्रशंसा और सम्मान करने लगते हैं
  • दूसरों और स्वयं को मानसिक शांति मिलती है
  • किसी से विवाद होने पर उसमें जीत हासिल होती है
  • सुनने वालों का मन इधर-उधर भटकने लगता है

उत्तर: इस दोहे के अनुसार मधुर वाणी बोलने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे दूसरों और स्वयं को मानसिक शांति मिलती है

प्रश्न (5) “साँच बराबर तप नहीं झूठ बराबर पाप। जाके हिरदे साँच है ता हिरदे गुरु आप।।” इस दोहे से क्या निष्कर्ष निकाला जा सकता है?

  • सत्य और झूठ में कोई अंतर नहीं होता है
  • सत्य का पालन करना किसी साधना से कम नहीं है
  • बाहरी परिस्थितियाँ ही जीवन में सफलता तय करती हैं
  • सत्य महत्वपूर्ण जीवन मूल्य है जिससे हृदय प्रकाशित होता है

उत्तर: इस दोहे से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि सत्य का पालन करना किसी साधना से कम नहीं है और सत्य एक महत्वपूर्ण जीवन मूल्य है जिससे हृदय प्रकाशित होता है

प्रश्न (6) “निंदक नियरे राखिए आँगन कुटी छवाय। बिन पानी साबुन बिना निर्मल करै सुभाय।।” यहाँ जीवन में किस दृष्टिकोण को अपनाने की सलाह दी गई है?

  • आलोचना से बचना चाहिए
  • आलोचकों को दूर रखना चाहिए
  • आलोचकों को पास रखना चाहिए
  • आलोचकों की निंदा करनी चाहिए

उत्तर: यहाँ जीवन में आलोचकों को पास रखने के दृष्टिकोण को अपनाने की सलाह दी गई है।

प्रश्न (7) “साधू ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय। सार-सार को गहि रहै थोथा देइ उड़ाय।।” इस दोहे में ‘सूप’ किसका प्रतीक है?

  • मन की कल्पनाओं का
  • सुख-सुविधाओं का
  • विवेक और सूझबूझ का
  • कठोर और क्रोधी स्वभाव का

उत्तर: इस दोहे में ‘सूप’ विवेक और सूझबूझ का प्रतीक है।

मिलकर करें मिलान

प्रश्न (क): पाठ से चुनकर कुछ पंक्तियाँ नीचे स्तंभ 1 में दी गई हैं। अपने समूह में इन पर चर्चा कीजिए और इन्हें स्तंभ 2 में दिए गए इनके सही अर्थ या संदर्भ से मिलाइए।

क्रम स्तंभ 1 क्रम स्तंभ 2
1. गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागौं पाँय। 5. गुरु शिष्य का मार्गदर्शन करते हैं और शिष्य गुरु का आदर करते हैं।
2. अति का भला न बोलना, अति का भला न चूप। 6. जीवन में संतुलन महत्वपूर्ण है।
3. ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय। 4. हमें मधुर वाणी बोलनी चाहिए जिससे मन को शांति प्राप्त हो सके।
4. निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय। 8. आलोचकों को अपने पास रखना चाहिए। वे हमें हमारी गलतियाँ बताते हैं।
5. साधू ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय। 7. विवेकशील व्यक्ति को अच्छे और बुरे की पहचान होती है।
6. कबिरा मन पंछी भया, भावै तहवाँ जाय। 1. मन को नियंत्रित करना और सही दिशा में ले जाना महत्वपूर्ण है।
7. साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप। 3. सत्य का पालन कठिन है और झूठ पाप के समान है।
8. बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर। 2. बड़ा होने के साथ व्यक्ति को उदार भी होना चाहिए।

 

प्रश्न (ख): नीचे स्तंभ 1 में दी गई दोहों की पंक्तियों को स्तंभ 2 में दी गई उपयुक्त पंक्तियों से जोड़िए-

स्तंभ 1 स्तंभ 2
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागौं पाँय। बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।।
अति का भला न बोलना, अति का भला न चूप। अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।।
ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय। औरन को सीतल करै, आपहुँ सीतल होय।।
निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय। बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करै सुभाय।।
साधू ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय। सार सार को गहि रहै, थोथा देइ उड़ाय।।
कबिरा मन पंछी भया, भावै तहवाँ जाय। जो जैसी संगति करै, सो तैसा फल पाय।।
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर। पंथी को छाया नहीं, फल लागै अति दूर।।
साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप। जाके हिरदे साँच है, ता हिरदे गुरु आप।।

 

पंक्तियों पर चर्चा

प्रश्न (क): “कबिरा मन पंछी भया भावै तहवाँ जाय। जो जैसी संगति करै सो तैसा फल पाय”

उत्तर: इन पंक्तियों का अर्थ है कि हमारा मन एक पक्षी की तरह हो गया है, जो अपनी इच्छा से कहीं भी उड़कर चला जाता है। यह मन जिस तरह के लोगों के साथ रहता है, यानी जैसी संगत करता है, उसे वैसा ही परिणाम मिलता है। अच्छी संगति से अच्छा फल और बुरी संगति से बुरा फल मिलता है।

प्रश्न (ख): “साँच बराबर तप नहीं झूठ बराबर पाप। जाके हिरदे साँच है ता हिरदे गुरु आप।।”

उत्तर: इन पंक्तियों का अर्थ है कि सच बोलने के बराबर कोई तपस्या नहीं है और झूठ बोलने के बराबर कोई पाप नहीं है। जिसके हृदय में सच्चाई होती है, उसके हृदय में स्वयं ईश्वर निवास करते हैं।

सोच-विचार के लिए

प्रश्न (क): “गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागौं पाँय।” इस दोहे में गुरु को गोविंद (ईश्वर) से भी ऊपर स्थान दिया गया है। क्या आप इससे सहमत हैं? अपने विचार लिखिए।

उत्तर: हाँ, मैं इस बात से सहमत हूँ। कबीरदास जी कहते हैं कि गुरु ही हमें ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग दिखाते हैं। बिना गुरु के ज्ञान के हम भगवान को नहीं जान सकते। इसलिए, जिसने हमें भगवान तक पहुँचाया, वह भगवान से भी बड़ा है। गुरु का स्थान हमारे जीवन में सबसे ऊँचा होना चाहिए।

प्रश्न (ख): “बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।” इस दोहे में कहा गया है कि सिर्फ बड़ा या संपन्न होना ही पर्याप्त नहीं है। बड़े या संपन्न होने के साथ-साथ मनुष्य में और कौन-कौन सी विशेषताएँ होनी चाहिए? अपने विचार साझा कीजिए।

उत्तर: बड़े या संपन्न होने के साथ-साथ मनुष्य में विनम्रता, उदारता और परोपकार की भावना होनी चाहिए। व्यक्ति को दूसरों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति बहुत बड़ा है, लेकिन उसकी बड़ाई किसी के काम नहीं आती, तो उसका बड़ा होना खजूर के पेड़ की तरह व्यर्थ है।

प्रश्न (ग): “ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय।” क्या आप मानते हैं कि शब्दों का प्रभाव केवल दूसरों पर ही नहीं स्वयं पर भी पड़ता है? आपके बोले गए शब्दों ने आपके या किसी अन्य के स्वभाव या मनोदशा को कैसे परिवर्तित किया? उदाहरण सहित बताइए।

उत्तर: हाँ, मैं मानता हूँ कि शब्दों का प्रभाव दूसरों के साथ-साथ स्वयं पर भी पड़ता है। जब हम मीठे और अच्छे शब्द बोलते हैं, तो सुनने वाले को तो शांति मिलती ही है, साथ ही हमारा मन भी शांत और प्रसन्न रहता है। एक बार मेरा मित्र मुझसे नाराज़ था, लेकिन जब मैंने उससे बहुत प्यार और शांति से बात की, तो उसका गुस्सा शांत हो गया और मुझे भी बहुत अच्छा महसूस हुआ।

प्रश्न (ङ): “जो जैसी संगति करै सो तैसा फल पाय।।” हमारे विचारों और कार्यों पर संगति का क्या प्रभाव पड़ता है? उदाहरण सहित बताइए।

उत्तर: हमारी संगति का हमारे विचारों और कार्यों पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। यदि हमारे मित्र अच्छे और मेहनती हैं, तो हम भी पढ़ाई और अच्छे कामों की ओर प्रेरित होते हैं। वहीं, यदि हमारी संगति बुरी है, तो हम भी गलत आदतों का शिकार हो सकते हैं। जैसे, मेरे एक दोस्त ने जबसे अच्छे धावकों के साथ अभ्यास करना शुरू किया, वह भी दौड़ में पुरस्कार जीतने लगा।

अनुमान और कल्पना से

प्रश्न (क): “गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागौं पाँय।” यदि आपके सामने यह स्थिति होती तो आप क्या निर्णय लेते और क्यों? यदि संसार में कोई गुरु या शिक्षक न होता तो क्या होता?

उत्तर: यदि मेरे सामने यह स्थिति होती, तो मैं भी कबीरदास जी की तरह पहले अपने गुरु के पैर छूता, क्योंकि गुरु ने ही मुझे ईश्वर के बारे में बताया और उन तक पहुँचने का ज्ञान दिया। यदि संसार में कोई गुरु या शिक्षक नहीं होता, तो कोई भी ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाता। हम सब अज्ञान के अंधकार में भटकते रहते और जीवन में सही और गलत का भेद नहीं समझ पाते।

प्रश्न (ख): “अति का भला न बोलना, अति का भला न चूप।” यदि कोई व्यक्ति बहुत अधिक बोलता है या बहुत चुप रहता है तो उसके जीवन पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?

उत्तर: जो व्यक्ति बहुत अधिक बोलता है, लोग उसे गंभीरता से नहीं लेते और उसकी बातों का महत्व कम हो जाता है। वहीं, जो व्यक्ति बहुत चुप रहता है, वह अपनी बात या विचार दूसरों तक नहीं पहुँचा पाता और अक्सर लोग उसे गलत समझ लेते हैं।

प्रश्न (ग): “साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।” झूठ बोलने पर आपके जीवन पर क्या प्रभाव पड़ सकता है? कल्पना कीजिए कि आपके शिक्षक ने आपके किसी गलत उत्तर के लिए अंक दे दिए हैं, ऐसी परिस्थिति में आप क्या करेंगे?

उत्तर: झूठ बोलने से लोगों का हम पर से विश्वास उठ जाता है और कोई भी हमारी इज़्ज़त नहीं करता। यदि मेरे शिक्षक मुझे गलत उत्तर के लिए अंक दे देते, तो मैं ईमानदारी से उन्हें अपनी गलती बताकर अंक ठीक करने का अनुरोध करता। ऐसा करके मुझे आत्मिक शांति मिलती क्योंकि सच बोलना सबसे बड़ी तपस्या है।

प्रश्न (घ): “ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।” यदि सभी मनुष्य अपनी वाणी को मधुर और शांति देने वाली बना लें तो लोगों में क्या परिवर्तन आ सकते हैं?

उत्तर: यदि सभी मनुष्य मधुर वाणी बोलने लगें, तो दुनिया से लड़ाई-झगड़े और नफरत खत्म हो जाएगी। हर तरफ शांति और प्रेम का वातावरण होगा। लोग एक-दूसरे की बात को बेहतर ढंग से समझ पाएँगे और समाज में आपसी सहयोग बढ़ेगा।

प्रश्न (ङ): “बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।” आप अपनी कक्षा का कक्षा नायक या नायिका (मॉनीटर) चुनने के लिए किसी विद्यार्थी की किन-किन विशेषताओं पर ध्यान देंगे?

उत्तर: मैं कक्षा नायक चुनने के लिए विद्यार्थी की इन विशेषताओं पर ध्यान दूँगा:

  • वह अनुशासित हो।
  • वह सबकी मदद करने वाला हो।
  • वह ईमानदार और निष्पक्ष हो।
  • वह विनम्र हो और सभी से अच्छे से बात करता हो।

प्रश्न (च): “निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय।” यदि कोई आपकी गलतियों को बताता रहे तो आपको उससे क्या लाभ होगा?

उत्तर: यदि कोई हमारी गलतियों को बताता रहे, तो हमें खुद को सुधारने का अवसर मिलता है। हमारी कमियाँ दूर होती हैं और हमारा स्वभाव बिना किसी साबुन-पानी के निर्मल हो जाता है। इससे हम एक बेहतर इंसान बन सकते हैं।

प्रश्न (छ): “साधू ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।” कल्पना कीजिए कि आपके पास ‘सूप’ जैसी विशेषता है तो आपके जीवन में कौन-कौन से परिवर्तन आएँगे?

उत्तर: यदि मेरे पास ‘सूप’ जैसी विशेषता होती, तो मैं जीवन में केवल अच्छी और काम की बातों को ग्रहण करता और व्यर्थ की बातों को छोड़ देता। इससे मेरा समय बर्बाद नहीं होता और मैं सही निर्णय ले पाता। मेरे जीवन में सकारात्मकता बढ़ जाती।

प्रश्न (ज): कबिरा मन पंछी भया, भावै तहवाँ जाय।” यदि मन एक पंछी की तरह उड़ सकता तो आप उसे कहाँ ले जाना चाहते और क्यों?

उत्तर: यदि मेरा मन एक पंछी की तरह उड़ सकता, तो मैं उसे हिमालय की शांत वादियों में ले जाना चाहता ताकि उसे शांति और सुकून मिल सके। मैं उसे अपने दादा-दादी के गाँव भी ले जाता, जहाँ प्रकृति की सुंदरता और अपनों का प्यार है।

आज के समय में

प्रश्न: नीचे कुछ घटनाएँ दी गई हैं। इन्हें पढ़कर आपको कबीर के कौन-से दोहे याद आते हैं? घटनाओं के नीचे दिए गए रिक्त स्थान पर उन दोहों को लिखिए-

  1. अमित का मन पढ़ाई में नहीं लगता था और वह गलत संगति में चला गया। कुछ समय बाद जब उसके अंक कम आए तो उसे समझ में आया “संगति का असर जीवन पर पड़ता है।”
    उत्तर: कबिरा मन पंछी भया, भावै तहवाँ जाय। जो जैसी संगति करै, सो तैसा फल पाय।।
  2. एक विद्यार्थी इंटरनेट पर लगातार सूचनाएँ खोज रहा था। उसके पिता ने कहा- “हर जानकारी सही नहीं होती, सही बातों को चुनो और बेकार छोड़ दो।”
    उत्तर: साधू ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय। सार सार को गहि रहै, थोथा देइ उड़ाय।।
  3. आपका एक मित्र आपकी किसी गलत बात पर आपकी आलोचना करता है। आप पहले परेशान होते हैं, लेकिन फिर आपने सोचा “आलोचना मुझे सुधरने का मौका देती है, मुझे इन बातों का बुरा नहीं मानना चाहिए। इसे सकारात्मक रूप से लेना चाहिए।”
    उत्तर: निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय। बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करै सुभाय।।
  4. रीमा ने अपने गुस्से में सहकर्मी को बुरा-भला कह दिया, जिससे वातावरण बिगड़ गया। बाद में उसने समझा कि अगर वह शांति से बात करती तो समस्या हल हो जाती।
    उत्तर: ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय। औरन को सीतल करै, आपहुँ सीतल होय।।
  5. कक्षा में मोहन ने बहुत अधिक बोलकर सबको परेशान कर दिया, जबकि रमेश बिल्कुल चुप रहा। गुरुजी ने कहा – “बोलचाल में संतुलन आवश्यक है, न अधिक बोलो, न अधिक चुप रहो।”
    उत्तर: अति का भला न बोलना, अति का भला न चूप। अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।।
  6. सुरेश को जब पुरस्कार मिला तो उसने कहा- “इसमें मेरे परिश्रम के साथ मेरे गुरुजनों का मार्गदर्शन भी सम्मिलित है।”
    उत्तर: गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागौं पाँय। बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।।

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