प्रदूषण

प्रदूषण आज की दुनिया में उभरती उन चुनौतियों में से एक है, जो हमारे अस्तित्व को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर रही हैं। बढ़ती जनसंख्या, अनियंत्रित औद्योगिकीकरण और तेज़ी से बदलती जीवनशैली ने पर्यावरण को ऐसा नुकसान पहुँचाया है जिसकी भरपाई करना अत्यंत कठिन होता जा रहा है। वायु, जल, भूमि—तीनों ही स्तरों पर प्रदूषण की समस्या विकराल रूप ले चुकी है और इससे मनुष्यों के साथ-साथ समस्त जीव-जंतुओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

शहरों में गाड़ियों और फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुआँ वायु प्रदूषण को बढ़ाता है, जिससे श्वसन संबंधी रोग फैल रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में रसायनिक खादों व कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग ने मिट्टी की उर्वरकता कम कर दी है। नदियों में कारखानों का अपशिष्ट बहाने से जल प्रदूषण बढ़ रहा है, जिसके फलस्वरूप पीने के साफ़ पानी की कमी होती जा रही है। गंदगी और प्लास्टिक कचरे की भरमार के कारण पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर क्षति हो रही है।

प्रदूषण के प्रभाव दूरगामी हैं। विश्व भर में बढ़ते तापमान के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं और समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है, जिससे तटीय इलाकों में बाढ़ एवं भूस्खलन की आशंका तेज़ हो गई है। वनों के अंधाधुंध कटान ने पर्यावरण का संतुलन बिगाड़कर मौसम चक्र को अनिश्चित बना दिया है। कभी अत्यधिक बारिश तो कभी लम्बे सूखे का प्रकोप किसानों की आजीविका को प्रभावित करता है।

समस्या का समाधान केवल सरकार या कुछ संगठनों पर छोड़ने से नहीं होगा। हर नागरिक को अपनी ज़िम्मेदारी समझनी होगी। पैदल चलना या सार्वजनिक परिवहन का उपयोग, ऊर्जा की बचत, कचरे का उचित निष्पादन और वृक्षारोपण जैसे छोटे-छोटे कदम भी बड़े परिवर्तन ला सकते हैं। हमें यह स्वीकारना होगा कि प्रकृति की सुरक्षा ही हमारी सुरक्षा है। यदि अब भी हमने इस समस्या को अनदेखा किया तो आने वाली पीढ़ियों के लिए जीवन और भी कठिन हो जाएगा।

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