पेड़ की आत्मकथा

मैं एक पेड़ हूँ, जो बरसों से धरती की छाया बना हुआ हूँ। मेरा तना मज़बूत है और मेरी जड़ें धरती के भीतर गहराई तक फैली हुई हैं। दिन-रात मैं मौसमों की मार सहता हूँ, कभी तेज़ धूप मुझे जलाती है, तो कभी मूसलाधार बारिश मुझे भिगो देती है। फिर भी मुझे कोई शिकायत नहीं, क्योंकि मेरा जन्म ही प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने के लिए हुआ है। मैं पक्षियों का बसेरा हूँ और अनेकों जीव-जन्तु मुझमें अपना आश्रय ढूँढ लेते हैं।

जब मैं छोटा था, तब मुझे लोग बड़े प्यार से पानी देते थे और मेरी देखभाल करते थे। जैसे-जैसे मैं बढ़ता गया, मैंने अपनी शाखाओं को दूर-दूर तक फैलाया और ठंडी छाया से राहगीरों को राहत दी। सुबह की पहली किरण जब मुझ पर पड़ती है, तो ऐसा लगता है मानो जीवन का कोई नया संदेश लेकर आई हो। मैं हवा को शुद्ध करता हूँ और बदले में कुछ नहीं माँगता, बस मनुष्य की थोड़ी-सी देखभाल चाहता हूँ।

समय बदला तो मैंने देखा कि मनुष्य अपने स्वार्थ के कारण पेड़ों को काटने लगा। मुझे देखकर दुख होता है कि हम पेड़ उन्हें फल, फूल, लकड़ी और छाया सब देते हैं, फिर भी मनुष्य हमारे महत्व को नहीं समझ पाता। जंगलों के कम होने से धरती का तापमान बढ़ रहा है, जलस्त्रोत सूख रहे हैं और कई जीव-जंतुओं को रहने की जगह नहीं मिल रही है।

मैं चाहूँगा कि मनुष्य मेरे और मेरे जैसे अन्य पेड़ों की रक्षा करे। जब वातावरण शुद्ध रहेगा, तब ही जीव-जंतुओं और मानव का जीवन सुरक्षित रहेगा। मैं तो बस इतना ही जानता हूँ कि यदि हम पेड़ों को यूँ ही काटते रहे, तो आने वाली पीढ़ियाँ हमारे महत्त्व से वंचित रह जाएँगी। एक पेड़ की आत्मकथा यही कहती है—हमारा जीवन तुम्हारे जीवन से जुड़ा है; हमारा बचना तुम्हारे बचने का कारण है।

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