मेरी पहली यात्रा…

मेरी पहली यात्रा… ये शब्द जैसे एक जादुई मंत्र हैं, जो मुझे बचपन की गलियों में ले जाते हैं, जहाँ हर चीज़ नयी, रोमांचक और अद्भुत लगती थी। यह सिर्फ़ एक जगह से दूसरी जगह का सफ़र नहीं था, बल्कि एक सपने के साकार होने जैसा था। एक ऐसी दुनिया के दर्शन, जो किताबों और कहानियों में ही सिमटी हुई थी।

मुझे ठीक से याद है, मैं सात साल का था। गर्मियों की छुट्टियाँ शुरू हो चुकी थीं और घर में उत्सव जैसा माहौल था। हम नैनीताल जा रहे थे! पहाड़ों की रानी, जिसकी सुंदरता के किस्से मैंने दादी माँ से सुने थे। बर्फ़ से ढकी चोटियाँ, हरे-भरे जंगल, गहरी नीली झील… मेरी कल्पना में नैनीताल किसी परीलोक जैसा लगता था।

यात्रा की तैयारियाँ ज़ोरों पर थीं। नए कपड़े, गर्म स्वेटर, चॉकलेट, बिस्कुट, मेरा छोटा सा बैग… सब कुछ बड़े जतन से पैक किया जा रहा था। मैं तो बस उस दिन का इंतज़ार कर रहा था, जब मैं कार में बैठूँगा और पहाड़ों की ओर चल दूँगा।

आखिरकार वो दिन आ ही गया। सुबह-सुबह हम घर से निकल पड़े। दिल्ली की भीड़-भाड़ से निकलकर जैसे ही हम हाईवे पर पहुँचे, मेरा उत्साह और भी बढ़ गया। खेत-खलिहान, गाँव, नदियाँ, सब कुछ मुझे बड़ा अनोखा लग रहा था। मैं कार की खिड़की से बाहर देखता हुआ, हर नज़ारे को अपनी यादों में कैद कर रहा था।

जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते गए, मैदान पीछे छूटने लगे और पहाड़ नज़र आने शुरू हो गए। शुरुआत में तो वे छोटे-छोटे टीलों जैसे दिखाई दे रहे थे, लेकिन धीरे-धीरे उनकी ऊँचाई बढ़ती गयी और वे विशालकाय रूप धारण करने लगे। हरी-भरी वादियों से घिरे, बादलों से लिपटे हुए पहाड़, एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे।

घुमावदार रास्ते शुरू हो गए। कार ऊपर चढ़ती जा रही थी और नीचे गहरी खाई दिखाई दे रही थी। थोड़ा डर भी लग रहा था, लेकिन रोमांच उससे कहीं ज़्यादा था। ठंडी हवा मेरे चेहरे पर लग रही थी। पेड़ों की सरसराहट, पक्षियों का चहचहाना, सब कुछ एक अलग ही दुनिया का एहसास करा रहा था। रास्ते में कई झरने भी दिखाई दिए। पहाड़ों से गिरता हुआ पानी, जैसे चाँदी की धारा बह रही हो। मैंने अपनी पानी की बोतल में उस ठंडे, मीठे पानी को भर लिया।

नैनीताल पहुँचने पर तो जैसे मेरी ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं रहा। नीली झील, हरे-भरे पहाड़, रंग-बिरंगे घर, सब कुछ बहुत सुंदर था। हमने नैनी झील में नौका विहार किया। शांत पानी पर तैरती हुई नाव, चारों ओर पहाड़ों का नज़ारा, यह अनुभव अविस्मरणीय था। हम मॉल रोड पर घूमे, स्थानीय बाजार से ऊनी कपड़े और यादगार चीजें खरीदीं। मैंने एक छोटा सा लकड़ी का घोड़ा खरीदा, जो आज भी मेरे पास है, उस यात्रा की याद दिलाता है।

शाम को सूर्यास्त का नज़ारा बेहद खूबसूरत था। आसमान रंग-बिरंगा हो गया था। लाल, पीला, नारंगी, सब रंग मिलकर एक अद्भुत छटा बिखेर रहे थे। पहाड़ों पर सूरज की सुनहरी किरणें पड़ रही थीं, जैसे कोई जादू हो। रात को ठंड बहुत ज़्यादा थी। होटल के कमरे में हम आग जलाकर बैठे और गरमा-गरम खाना खाया। पहाड़ों की ठंड में गरम खाने का स्वाद ही कुछ और था।

अगले दिन हमने टिफ़िन टॉप और स्नो व्यू पॉइंट जैसे कुछ और दर्शनीय स्थलों का भ्रमण किया। ऊँची चोटियों से नैनीताल शहर और आसपास के इलाकों का नज़ारा देखकर मैं दंग रह गया। ऐसा लग रहा था जैसे पूरी दुनिया मेरे पैरों तले हो। फिर हम चिड़ियाघर भी गए, जहाँ मैंने कई तरह के पक्षी और जानवर देखे।

वापसी का समय आ गया था। मन तो नहीं कर रहा था वापस जाने का, लेकिन जाना ज़रूरी था। वापस आते हुए भी मैं खिड़की से बाहर देखता रहा, हर नज़ारे को अपनी यादों में समेटता हुआ।

यह मेरी पहली यात्रा थी, जिससे मुझे दुनिया की खूबसूरती पता चली । इसने मुझे सिखाया कि किताबों में पढ़ने और असल में देखने में ज़मीन-आसमान का फ़र्क होता है। यह यात्रा मेरे लिए एक मधुर सपना बनकर रह गयी, जिसकी यादें आज भी मुझे ताज़ा करती हैं।  

 

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