चन्द्रगुप्त मौर्य

1) प्रतिभाशाली व्यक्तियों के लक्षण बचपन से ही प्रकट होने लगते हैं। चंद्रगुप्त भी बचपन से ही राजा बनने का स्वप्न देखते थे। 

क) चंद्रगुप्त बचपन से क्या स्वप्न देखते थे?
उत्तर: चंद्रगुप्त बचपन से ही राजा बनने का स्वप्न देखते थे। उनके मन में शासन करने की प्रबल इच्छा थी, और वे हमेशा स्वयं को एक राजा के रूप में कल्पना करते थे। 

ख) प्रतिभाशाली व्यक्तियों के लक्षण कब से प्रकट होने लगते हैं?
उत्तर: प्रतिभाशाली व्यक्तियों के लक्षण बचपन से ही प्रकट होने लगते हैं। उनकी प्रतिभा और गुण प्रारंभिक उम्र से ही उनके आचरण और व्यवहार में झलकने लगते हैं। 

ग) चंद्रगुप्त के आचरण में कौन से गुण दिखाई देते थे?
उत्तर: चंद्रगुप्त के आचरण और व्यवहार में राजा के योग्य प्रतिभा और गुण दिखाई देते थे। उनमें नेतृत्व क्षमता, स्वाभिमान, बुद्धिमत्ता और न्यायप्रियता के गुण थे। 

घ) इस अनुच्छेद का मुख्य संदेश क्या है?
उत्तर: इस अनुच्छेद का मुख्य संदेश यह है कि प्रतिभाशाली व्यक्तियों के गुण बचपन से ही प्रकट हो जाते हैं, जैसा कि चंद्रगुप्त के उदाहरण से स्पष्ट है। उनके भीतर राजा बनने की आकांक्षा और उससे संबंधित गुणों का विकास प्रारंभिक अवस्था से ही होने लगा था, जो भविष्य में उनके महान शासक बनने का आधार बना।

2) भरी दोपहरी में बच्चों का खेल खूब जम रहा था। सभी बालक अभिनय में बड़े कुशल जान पड़ते थे।

क) बच्चे किस खेल में व्यस्त थे और कहाँ?
उत्तर: बच्चे बरगद के पेड़ के नीचे ऊँचे टीले को सिंहासन बनाकर “राजा-राजा” खेल रहे थे। यह स्थान गंगा के किनारे था, जहाँ दूर-दूर तक हरे-भरे खेत फैले हुए थे। 

ख) राजा बनने का अभिनय कौन कर रहा था?
उत्तर: दस वर्षीय बालक चंद्रगुप्त राजा बनने का अभिनय कर रहा था। वह ऊँचे टीले पर सिंहासन पर बैठा था, और उसके आस-पास उसके आठ-दस मित्र दरबारी, मंत्री एवं सैनिक बनने का अभिनय कर रहे थे। 

ग) बच्चे किन-किन भूमिकाओं का अभिनय कर रहे थे?
उत्तर: बच्चे विभिन्न भूमिकाओं का अभिनय कर रहे थे, जिनमें दरबारी, मंत्री और सैनिक शामिल थे। वे सभी अपने-अपने पात्रों में बड़े कुशलता से अभिनय कर रहे थे, जिससे लगता था कि वे वास्तव में राजदरबार का हिस्सा हैं। 

घ) प्राकृतिक वातावरण का वर्णन कैसे किया गया है?
उत्तर: प्राकृतिक वातावरण का वर्णन बहुत ही सुन्दर तरीके से किया गया है। गंगा के किनारे दूर-दूर तक हरे-भरे खेत फैले हुए थे, और धान की बालियाँ हरियाली को और बढ़ा रही थीं। बरगद का विशाल पेड़, जिसके नीचे बच्चे खेल रहे थे, वातावरण को और भी शांतिपूर्ण बना रहा था।

3) दस वर्षीय बालक चंद्रगुप्त, जो राजा बना बैठा था, उसकी आवाज़ बड़ी रोबीली थी। 

क) चंद्रगुप्त ने मंत्री से क्या पूछा?
उत्तर: चंद्रगुप्त ने अपने मंत्री बने मित्र विशाख से पूछा, “क्या हमारे राज्य में प्रजा सुखी है?” वह अपने राज्य की प्रजा के सुख-दुःख के बारे में जानना चाहता था। 

ख) मंत्री बने मित्र ने क्या उत्तर दिया?
उत्तर: मंत्री बने मित्र ने उत्तर दिया, “जी महाराज! प्रजा आपका गुणगान कर रही है, किसी को कोई कष्ट या अभाव नहीं है।” उन्होंने बताया कि प्रजा आपके शासन से खुश है और सब लोग सुखी हैं।

ग) चंद्रगुप्त की आवाज़ कैसी थी?
उत्तर: चंद्रगुप्त की आवाज़ बड़ी रोबीली थी। उसमें आत्मविश्वास और अधिकार का भाव था, जो उसके राजा के रूप में अभिनय को और प्रभावशाली बना रहा था। 

घ) इस संवाद से चंद्रगुप्त के व्यक्तित्व का कौन सा पहलू उजागर होता है?
उत्तर: इस संवाद से चंद्रगुप्त के प्रजावत्सल और संवेदनशील राजा बनने की आकांक्षा का पता चलता है। वह प्रजा के सुख-दुःख के प्रति जागरूक था और उनके कल्याण के लिए चिंतित था। यह उसके नेतृत्व गुण और न्यायप्रियता को उजागर करता है।

4) वे चंद्रगुप्त की आवाज़ और बातों से बड़े प्रभावित हुए। उन्होंने पास आकर चंद्रगुप्त को मगध का शासक बनने का आशीर्वाद दिया।

क) बच्चों के खेल को देखकर चाणक्य पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर: बच्चों के खेल को देखकर चाणक्य आनंदित हुए और विशेष रूप से चंद्रगुप्त की आवाज़ और बातों से अत्यंत प्रभावित हुए। उन्होंने उसमें एक भविष्य के शासक के गुण देखे और समझा कि यह बालक विशेष प्रतिभा का धनी है। 

ख) चाणक्य ने चंद्रगुप्त को क्या आशीर्वाद दिया?
उत्तर: चाणक्य ने पास आकर चंद्रगुप्त को मगध का शासक बनने का आशीर्वाद दिया। उन्होंने उसकी प्रतिभा को पहचानकर उसे प्रोत्साहित किया और भविष्य में उसके साथ मिलकर कार्य करने की संभावना को भी देखा। 

ग) चाणक्य कौन थे और वहाँ क्यों आए थे?
उत्तर: चाणक्य एक चोटी वाले विद्वान ब्राह्मण थे जो राजा नंद के दरबार से अपमानित होकर आए थे। वे एक सक्षम, बुद्धिमान, राष्ट्रप्रेमी नवयुवक की तलाश में थे, जिसकी मदद से वे राजा नंद से प्रतिशोध ले सकें। 

घ) चाणक्य ने चंद्रगुप्त में कौन से गुण देखे?
उत्तर: चाणक्य ने चंद्रगुप्त में तेजस्विता, वाक्‌पटुता, कुशल नेतृत्व क्षमता, न्यायप्रियता और प्रजावत्सलता के गुण देखे। उन्होंने महसूस किया कि चंद्रगुप्त में एक महान शासक बनने की सभी संभावनाएँ हैं, और वह उनके उद्देश्यों को पूरा करने में सहायक हो सकता है।

5) मुरा भी यही चाहती थी कि उसके पुत्र की शिक्षा-दीक्षा की उचित व्यवस्था हो, परंतु वह बेबस थी। राजा नंद ने उसके पति को बंदी बना लिया था। 

क) मुरा बरगद के वृक्ष के पास क्यों आई थीं?
उत्तर: मुरा अपने पुत्र चंद्रगुप्त को ढूँढ़ते हुए बरगद के वृक्ष के पास आई थीं। वह चिंतित थीं कि उनका पुत्र कहाँ है, और उसे खोजने के लिए वहाँ पहुँचीं। 

ख) चाणक्य ने मुरा से क्या कहा?
उत्तर: चाणक्य ने मुरा से कहा कि चंद्रगुप्त की हस्तरेखाएँ बड़ी प्रबल हैं और उसकी शिक्षा की व्यवस्था की जाए। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि उसका भाग्य अवश्य चमकेगा और वह महान कार्य करेगा। 

ग) मुरा अपने पुत्र की शिक्षा की व्यवस्था क्यों नहीं कर पा रही थीं?
उत्तर: मुरा बेबस थीं क्योंकि राजा नंद ने उनके पति को बंदी बना लिया था। आर्थिक तंगी और सामाजिक परिस्थितियों के कारण वह चंद्रगुप्त की शिक्षा की उचित व्यवस्था नहीं कर पा रही थीं। 

घ) चाणक्य की बातों का मुरा पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर: चाणक्य की बातें सुनकर मुरा के मन में अपने पुत्र के कुछ बनने की भावना का विश्वास फिर से जाग उठा। उसे आशा की किरण दिखाई दी और वह उत्साहित हुई कि चाणक्य के मार्गदर्शन में उसके पुत्र का भविष्य उज्ज्वल हो सकता है। 

6) वहाँ जाकर उन्होंने पिंजरे में बंद शेर को अच्छी तरह देखा। दरबार के सभी लोग सिर नीचे किए हुए बैठे थे। बालक चंद्रगुप्त ने बड़े उत्साह से कहा, “महाराज! मैं इस शेर को बाहर निकाल सकता हूँ।” 

क) राजा नंद ने बुद्धि की परीक्षा के लिए क्या योजना बनाई थी?
उत्तर: राजा नंद ने अपने दरबारियों, सेवकों और देशवासियों की बुद्धि की परीक्षा लेने के लिए पाटलिपुत्र के राजदरबार में लोहे के पिंजरे में शेर की एक मूर्ति रखवाई और पूरे राज्य में घोषणा करवाई कि जो भी व्यक्ति बिना पिंजरा तोड़े शेर को बाहर निकाल देगा, उसे एक हज़ार सोने की मुद्राएँ दी जाएँगी और उसकी मनचाही माँग भी पूरी की जाएगी। 

ख) चंद्रगुप्त ने शेर को पिंजरे से बाहर निकालने के लिए क्या उपाय किया?
उत्तर: चंद्रगुप्त ने शेर को पिंजरे से बाहर निकालने के लिए एक जलते हुए दीपक को पिंजरे की सलाखों के बीच से शेर की मूर्ति के पास रखा। शेर की मूर्ति मोम की बनी हुई थी, जो दीपक की गर्मी से पिघलने लगी। इस प्रकार, बिना पिंजरा तोड़े, शेर को पिघलाकर बाहर निकाल दिया गया। 

ग) चंद्रगुप्त ने अपनी मनचाही माँग के रूप में क्या माँगा और क्यों?
उत्तर: अपनी मनचाही माँग के रूप में चंद्रगुप्त ने अपने पिता को बंदीगृह से मुक्त कराने की इच्छा प्रकट की। उनके पिता को राजा नंद ने बंदी बना लिया था, और चंद्रगुप्त अपने पिता को आजाद कराना चाहते थे। 

घ) इस घटना से चंद्रगुप्त के व्यक्तित्व के कौन-कौन से गुण प्रकट होते हैं?
उत्तर: इस घटना से चंद्रगुप्त के निर्भीकता, स्वाभिमान, बुद्धिमत्ता और परिवार के प्रति समर्पण जैसे गुण प्रकट होते हैं। वे निडर होकर राजा के सामने चुनौती स्वीकार करते हैं, अपनी तीव्र बुद्धि का प्रयोग करके समस्या का समाधान निकालते हैं ।

७) वही बुद्धिमान, तेजस्वी, न्यायप्रिय चंद्रगुप्त काफी समय तक मगध के सम्राट रहे। चाणक्य उनके महामंत्री बने। चंद्रगुप्त के शासन काल में प्रजा सुखी, संपन्न एवं समृद्ध थी। ज्ञान-विज्ञान, वाणिज्य और विभिन्न कलाओं की उन्नति हुई।

क) चंद्रगुप्त के शासनकाल में प्रजा की स्थिति कैसी थी?
उत्तर: चंद्रगुप्त के शासनकाल में प्रजा अत्यंत सुखी, संपन्न और समृद्ध थी। उनके न्यायप्रिय और कुशल नेतृत्व के कारण राज्य में शांति और समृद्धि का वातावरण था। जनता को आवश्यक सुविधाएँ और सुरक्षा प्राप्त थी, जिससे उनका जीवन स्तर ऊँचा उठा और वे प्रसन्न थे।

ख) चाणक्य का चंद्रगुप्त के शासन में क्या योगदान था?
उत्तर: चाणक्य चंद्रगुप्त के महामंत्री बने और उनके शासन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता और रणनीतिक कौशल से चंद्रगुप्त को प्रशासन में सहायता की। उनकी नीतियों और सलाहों के कारण राज्य में ज्ञान-विज्ञान, वाणिज्य और विभिन्न कलाओं का विकास हुआ। 

ग) चंद्रगुप्त के शासनकाल में किन क्षेत्रों में उन्नति हुई?
उत्तर: चंद्रगुप्त के शासनकाल में ज्ञान-विज्ञान, वाणिज्य और विभिन्न कलाओं की उन्नति हुई। शिक्षा, व्यापार, कला, संस्कृति आदि क्षेत्रों में प्रगति हुई, जिससे राज्य की समृद्धि में वृद्धि हुई। नई तकनीकों और ज्ञान के प्रसार से समाज में सकारात्मक परिवर्तन आए।

घ) चंद्रगुप्त के व्यक्तित्व की कौन सी विशेषताएँ उन्हें एक महान शासक बनाती हैं?
उत्तर: चंद्रगुप्त के व्यक्तित्व में बुद्धिमत्ता, निर्भीकता, न्यायप्रियता, स्वाभिमान और प्रजावत्सलता जैसे गुण थे। वे अपने निर्णयों में न्याय और सत्य का पालन करते थे और प्रजा के कल्याण को सर्वोपरि मानते थे। उनकी नेतृत्व क्षमता और दूरदर्शिता ने उन्हें एक महान शासक बनाया, जिसके शासन में राज्य ने अभूतपूर्व उन्नति की।

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