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दीपदान

१) “नहीं धाय माँ, चलो न। थोड़ी देर के लिए चलो न।”

क) वक्ता और श्रोता का परिचय दीजिये।

इस वाक्य का वक्ता चित्तौड़ का 14 वर्षीय राजकुमार कुँवर उदयसिंह है, जो राज्य का भावी उत्तराधिकारी है। श्रोता पन्ना हैं, जो कुँवर की धाय माँ हैं। वह एक वीर और कर्तव्यनिष्ठ राजपूत स्त्री हैं, जिनका कुँवर के साथ माँ से भी बढ़कर गहरा और स्नेहपूर्ण संबंध है।

ख) वक्ता किस बात की जिद्द कर रहा था?

वक्ता, कुँवर उदयसिंह, अपनी धाय माँ पन्ना से दीपदान का उत्सव देखने चलने की ज़िद कर रहा था। नगर में चारों ओर नाच-गाना हो रहा था और लड़कियाँ सुंदर दीप जलाकर नाच रही थीं। इस मनमोहक दृश्य ने किशोर उदयसिंह को बहुत आकर्षित किया और वह चाहता था कि पन्ना भी उसके साथ इस आनंद में शामिल हो।

ग) श्रोता वक्ता को किस बात के लिए रोक रही थी और क्यों?

श्रोता, पन्ना, वक्ता उदयसिंह को दोबारा दीपदान उत्सव में जाने से रोक रही थी। वह ऐसा इसलिए कर रही थी क्योंकि उसकी अनुभवी आँखों ने बनवीर के षड्यंत्र को भाँप लिया था। उसे पूरा संदेह था कि यह उत्सव केवल एक दिखावा है और इसकी आड़ में बनवीर, कुँवर उदयसिंह की हत्या करने की योजना बना रहा है। पन्ना की दूरदर्शिता उसे बता रही थी कि महल के बाहर उत्सव में कुँवर के प्राण संकट में पड़ सकते हैं, इसलिए वह उन्हें हर कीमत पर महल में सुरक्षित रखना चाहती थी।

घ) वक्ता क्यों नाराज हो गया? नाराज होने पर उसने क्या किया?

वक्ता, उदयसिंह, अपनी धाय माँ पन्ना के रोकने पर नाराज हो गया क्योंकि एक किशोर होने के नाते वह खतरे की गंभीरता को नहीं समझ पा रहा था। उसे लगा कि उसकी छोटी सी इच्छा को अनावश्यक रूप से दबाया जा रहा है। अपनी इसी नाराज़गी और बाल हठ को प्रकट करने के लिए उसने बिना खाना खाए ज़मीन पर ही रूठकर सो जाने का नाटक किया, ताकि पन्ना उसकी बात मान जाए।

२) “उनको हमारा नाच बहुत अच्छा लगा।”

क) वक्ता क्यों प्रसन्न है?

इस वाक्य की वक्ता सोना है, जो एक खूबसूरत नर्तकी और रावल स्वरूप सिंह की बेटी है। वह इसलिए प्रसन्न है क्योंकि चित्तौड़ के राजकुमार, कुँवर उदयसिंह, ने उसके नृत्य को बहुत ध्यान से और देर तक देखा। राजकुमार से मिली यह प्रशंसा और ध्यान उसके लिए बहुत बड़े सम्मान की बात थी, जिससे वह स्वयं को विशेष महसूस कर रही थी।

ख) श्रोता ने अपने पुत्र को क्यों भुला दिया है?

श्रोता पन्ना है। उसने अपने पुत्र चंदन को इसलिए भुला दिया है क्योंकि उसने अपना संपूर्ण जीवन और ध्यान चित्तौड़ के भविष्य, यानी कुँवर उदयसिंह के प्रति अपने कर्तव्य को समर्पित कर दिया है। उसके कंधों पर पूरे सिसोदिया वंश के उत्तराधिकारी की रक्षा का भार था, जो उसकी व्यक्तिगत ममता से कहीं बड़ा था।

ग) बनवीर का श्रोता के बारे में क्या कहना है?

बनवीर, श्रोता पन्ना की तुलना एक अडिग अरावली पर्वत से करता है। उसका कहना है कि पन्ना एक विशाल पर्वत की तरह कुँवर उदयसिंह के आगे खड़ी है और उस तक पहुँचने का हर रास्ता रोके हुए है। इसलिए वह सोना से कहता है कि यदि पन्ना पहाड़ है, तो तुम चतुर बनास नदी बनकर बहो और अपना रास्ता बनाकर कुँवर को अपनी ओर खींच लो। बनवीर इस उपमा का प्रयोग पन्ना की दृढ़ता और उसे हटाने की अपनी कुटिल योजना को बताने के लिए करता है।

घ) दीपदान की तुलना किससे की गई है?

एकांकी में बनवीर के अनुसार, कुंड में तैरते हुए दीपों की दो सुंदर तुलनाएँ की गई हैं। पहली, वे भवसागर (संसार रूपी सागर) में तैरती हुई आत्माओं जैसे प्रतीत हो रहे हैं, जो जीवन और मृत्यु के चक्र को दर्शाता है। दूसरी, वे ऐसे लग रहे हैं मानो आकाश के बादल पानी बनकर कुंड में आ गए हों और तारे बनकर तैर रहे हों। बनवीर अपनी क्रूर योजना को छिपाने के लिए ऐसी सुंदर और काव्यात्मक भाषा का प्रयोग करता है।

३) “बनवीर के अनुग्रह ने तुम्हें पागल बना दिया है, सोना!”

क) श्रोता वक्ता को क्या सुझाव देती है?

श्रोता, सोना, वक्ता पन्ना को यह सुझाव देती है कि वह अपनी गंभीरता और चिंता छोड़कर महल से बाहर आए और उत्सव में शामिल हो। वह कहती है कि पन्ना को भी नाचना-गाना चाहिए और जीवन का आनंद लेना चाहिए। यह सुझाव देकर वह अप्रत्यक्ष रूप से पन्ना को कुँवर के पास से हटाने की बनवीर की योजना पर काम कर रही थी।

ख) श्रोता स्वयं को पागल क्यों कहती है?

श्रोता, सोना, स्वयं को पागल इसलिए कहती है क्योंकि उसका मानना है कि दुनिया में हर कोई किसी न किसी चीज़ के लिए पागल है। वह कहती है कि महाराणा कुश्ती में, बनवीर राजनीति में और पन्ना कुँवर के मोह में पागल है। इसलिए, वह इन सबके पागलपन के माहौल में शामिल होकर खुद को भी पागल बताती है। यह उसके चंचल और दुनिया को हल्के-फुल्के अंदाज़ में देखने वाले स्वभाव को दर्शाता है।

ग) श्रोता अपने बड़प्पन का प्रदर्शन किस तरह करती है?

श्रोता, सोना, अपने बड़प्पन का प्रदर्शन पन्ना को सामाजिक रूप से नीचा दिखाकर करती है। वह घमंड से कहती है कि वह एक रावल की बेटी है और भविष्य में उसका दर्जा और बढ़ेगा। इसके विपरीत, वह पन्ना के पद को कम आँकते हुए कहती है कि एक धाय माँ हमेशा एक धाय माँ ही रहती है। इस तरह वह अपने ऊँचे कुल और बेहतर भविष्य की बात करके पन्ना को अपमानित करने की कोशिश करती है।

घ) वक्ता उत्सव में क्यों नहीं जाना चाहती थी?

वक्ता, पन्ना, उत्सव में इसलिए नहीं जाना चाहती थी क्योंकि उसकी बुद्धि और अनुभव उसे बता रहे थे कि यह उत्सव एक छलावा है। उसे बनवीर की महत्वाकांक्षा का पता था और बिना किसी त्योहार के इतना बड़ा आयोजन करना उसके शक को और गहरा कर रहा था। वह मानती थी कि यह बनवीर द्वारा रचा गया एक सोचा-समझा षड्यंत्र है, जिसका असली मकसद कुँवर उदयसिंह को नुकसान पहुँचाना है। इसलिए वह कोई भी जोखिम लेने को तैयार नहीं थी।

४) “चित्तौड़ राग-रंग की भूमि नहीं है, जौहर की भूमि है।”

क) “जौहर की भूमि” से क्या तात्पर्य है?

“जौहर की भूमि” से तात्पर्य है त्याग, बलिदान और अपने आत्म-सम्मान की रक्षा करने वाली भूमि। यह सिर्फ एक ऐतिहासिक प्रथा का नाम नहीं, बल्कि चित्तौड़ के उसूलों और पहचान का प्रतीक है। यह याद दिलाता है कि चित्तौड़ के लोगों के लिए आनंद और विलासिता (राग-रंग) से बढ़कर उनका सम्मान और उनकी मातृभूमि की रक्षा है, जिसके लिए वे अपने प्राणों की आहुति भी दे सकते हैं।

ख) वक्ता श्रोता को क्या चेतावनी देती है?

वक्ता, पन्ना, श्रोता सोना को यह कठोर चेतावनी देती है कि वह बनवीर जैसे देशद्रोही का साथ देकर अपना भविष्य अंधकार में डाल रही है। वह उसे धिक्कारती हुई कहती है कि जिस राग-रंग में वह डूबी है, वह जल्द ही समाप्त हो जाएगा और बनवीर का साथ देने के कारण उसका भी सर्वनाश निश्चित है। यह एक तरह से भविष्य में होने वाली अनहोनी का संकेत है।

ग) वक्ता क्यों शंकित है?

वक्ता, पन्ना, कई ठोस कारणों से शंकित है। उसने चित्तौड़ में हाल ही में हुए राजनीतिक बदलाव देखे थे। वह बनवीर की राजसिंहासन पाने की लालसा को अच्छी तरह जानती थी। जब बनवीर ने, जो पहले से ही महाराणा पर अपना प्रभाव जमा चुका था, अचानक बिना किसी त्योहार के एक भव्य उत्सव का आयोजन किया, तो पन्ना का शक यकीन में बदल गया। उसे स्पष्ट हो गया कि यह उत्सव ध्यान भटकाने के लिए एक नाटक है और पर्दे के पीछे कोई भयानक साजिश रची जा रही है।

घ) वक्ता किसे कहाँ नहीं भेजना चाहती थी?

वक्ता, पन्ना, चित्तौड़ के एकमात्र उत्तराधिकारी कुँवर उदयसिंह को राजमहल से बाहर, बनवीर द्वारा आयोजित दीपदान के कार्यक्रम में बिल्कुल नहीं भेजना चाहती थी। वह जानती थी कि महल के बाहर उत्सव की भीड़ में कुँवर की सुरक्षा करना असंभव होगा। उसे डर था कि यही वह मौका है जिसका बनवीर इंतजार कर रहा था, ताकि वह कुँवर की हत्या करके सिंहासन पर अपना अधिकार स्थायी कर सके। इसलिए पन्ना का एकमात्र लक्ष्य कुँवर को अपनी आँखों के सामने महल में सुरक्षित रखना था।

५) “आज तो जैसे उसके पैरों में मोच आ गई हो।”

क) चंदन माँ से किस विषय में पूछ रहा है?

बालक चंदन अपनी माँ पन्ना से सोना के बदले हुए व्यवहार के विषय में पूछ रहा है । वह बताता है कि सोना जो हमेशा नाचती-गाती और चहकती रहती है, आज माँ के कमरे से निकलने के बाद बिल्कुल चुपचाप और धीरे-धीरे जा रही थी । सोना का ऐसा शांत और उदास व्यवहार चंदन को बहुत अजीब लगा, इसीलिए वह अपनी माँ से इसका कारण जानना चाहता था।

ख) चंदन माँ को कुँवर और सोना के विषय में क्या बताता है?

चंदन अपनी माँ को बताता है कि आजकल कुँवर उदयसिंह का मन खेल-कूद में नहीं लगता और वे अक्सर सोना के यहाँ चले जाते हैं । वह अपनी बाल-सुलभ दृष्टि से बताता है कि कुँवर सोना को देखते रहते हैं और सोना कुँवर को देखती रहती है, लेकिन दोनों आपस में बात नहीं करते । इस तरह चंदन अनजाने में ही कुँवर और सोना के बीच बढ़ रहे आकर्षण के बारे में अपनी माँ को बता देता है।

ग) चंदन को क्या देखना पसंद है?

चंदन को पहाड़ी खरगोश देखना बहुत पसंद है । वह उसकी फुर्ती और छलाँग मारने की क्षमता से बहुत प्रभावित है। वह अपनी माँ से कहता है कि खरगोश पलक झपकते ही एक चोटी से दूसरी चोटी पर पहुँच जाता है, जैसे उसमें बिजली भरी हो । चंदन भी उस खरगोश की तरह ही तेज और शक्तिशाली बनना चाहता है, जो उसकी साहसी और वीर बनने की बाल-सुलभ आकांक्षा को दिखाता है ।

घ) चंदन अकेले भोजन करना क्यों नहीं चाहता? माँ ने उसे क्या आश्वासन दिया?

चंदन अकेले भोजन इसलिए नहीं करना चाहता था क्योंकि उसे हमेशा कुँवर उदयसिंह के साथ भोजन करने की आदत थी । दोनों के बीच गहरा प्रेम था और वे साथ में ही खाते-खेलते थे। जब माँ उसे अकेले खाने को कहती है, तो वह मना कर देता है। इस पर माँ पन्ना उसे यह आश्वासन देती है कि वह उसे अच्छी-अच्छी कहानियाँ सुनाते हुए अपने हाथों से खाना खिलाएगी और जल्दी ही उसकी टूटी माला बनाकर उसके पास आ जाएगी ।

६) “हाय सर्वनाश हो रहा है। क्या मेवाड़ को ऐसे ही दिन देखने थे?”

क) वक्ता कौन है? उसने उपरोक्त वाक्य क्यों कहा?

इस वाक्य की वक्ता सामली है, जो महल की एक परिचारिका (दासी) है । उसने यह वाक्य अत्यधिक भय और निराशा में कहा है । उसे अभी-अभी यह भयानक समाचार मिला था कि बनवीर ने महाराणा विक्रमादित्य की हत्या कर दी है और अब वह कुँवर उदयसिंह को मारने के लिए उनके महल की तरफ बढ़ रहा है । मेवाड़ के राजवंश पर आए इस संकट को देखकर उसके मुँह से ये निराशा भरे शब्द निकले।

ख) बनवीर ने क्या षड़यंत्र रचा था?

बनवीर ने चित्तौड़ का सिंहासन हड़पने के लिए एक गहरा षड्यंत्र रचा था। उसने सबसे पहले नगर में दीपदान का उत्सव आयोजित करवाया ताकि सभी नगरवासियों का ध्यान नाच-गाने में लगा रहे । इसी मौके का फायदा उठाकर वह चुपके से राजमहल में गया और सोए हुए महाराणा विक्रमादित्य की हत्या कर दी । इसके बाद, उसने कुँवर उदयसिंह को भी मारने की योजना बनाई ताकि सिंहासन का कोई और उत्तराधिकारी जीवित न बचे ।

ग) किसका जीवन संकट में है?

इस समय चित्तौड़ के अंतिम उत्तराधिकारी, कुँवर उदयसिंह का जीवन संकट में है । उनके बड़े भाई महाराणा विक्रमादित्य की हत्या हो चुकी है । अब हत्यारा बनवीर अपनी तलवार लेकर कुँवर के महल की ओर बढ़ रहा है ताकि उनकी भी हत्या करके वह स्वयं चित्तौड़ का महाराणा बन सके । पूरे महल को सैनिकों ने घेर लिया है और बचने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा है।

घ) बनवीर को षड्यंत्र में सफलता क्यों मिली?

बनवीर को अपने षड्यंत्र में सफलता इसलिए मिली क्योंकि उस समय चित्तौड़ की राजनीतिक स्थिति बहुत कमजोर थी। महाराणा विक्रमादित्य एक अलोकप्रिय शासक थे, जो राज-काज छोड़कर दिन भर मल्लयुद्ध में व्यस्त रहते थे । इस कारण राज्य के सभी सामंत उनसे असंतुष्ट थे । बनवीर ने इसी स्थिति का लाभ उठाया, सैनिकों को अपनी तरफ मिला लिया और सामंतों में अपना डर पैदा कर दिया । इसलिए जब उसने महाराणा की हत्या की, तो किसी ने भी उसका विरोध करने का साहस नहीं किया।

७) “उसके मन में कुछ तो दया होगी।”

क) वक्ता कुंभलगढ़ क्यों जाना चाहती थी?

वक्ता, पन्ना धाय, कुँवर उदयसिंह के प्राणों की रक्षा करने के लिए उन्हें लेकर कुंभलगढ़ भाग जाना चाहती थी । उसे पता चल चुका था कि बनवीर ने महाराणा की हत्या कर दी है और अब वह कुँवर को मारने आ रहा है । कुंभलगढ़ एक सुरक्षित किला था, जहाँ ले जाकर वह मेवाड़ के उत्तराधिकारी को बनवीर के खूनी हाथों से बचा सकती थी।

ख) वक्ता के कुंभलगढ़ जाने में क्या बाधा है?

वक्ता पन्ना के कुंभलगढ़ जाने में सबसे बड़ी बाधा यह थी कि बनवीर के सैनिकों ने महल को चारों ओर से घेर लिया था और बाहर निकलने के सभी रास्ते बंद थे । इसके अलावा, बनवीर के डर से कोई भी सामंत या सैनिक उसकी मदद करने को तैयार नहीं था । रात के अंधेरे में महल से बचकर निकलना और कुंभलगढ़ तक का सफर तय करना लगभग असंभव था ।

ग) वक्ता को कहीं से सहायता क्यों नहीं मिल रही थी?

वक्ता पन्ना को कहीं से सहायता इसलिए नहीं मिल रही थी क्योंकि बनवीर ने पूरे महल और नगर में डर का माहौल बना दिया था। उसने सैनिकों को अपनी तरफ मिला लिया था और सभी सामंत उसके आतंक से भयभीत थे । इसके अतिरिक्त, महाराणा विक्रमादित्य का शासन अच्छा न होने के कारण प्रजा या सामंतों में राजपरिवार के प्रति बहुत अधिक निष्ठा भी नहीं थी । इसी डर और असंतोष के कारण कोई भी पन्ना की मदद के लिए आगे नहीं आया।

घ) वक्ता दया की भीख माँगने की बात क्यों करती है?

वक्ता पन्ना दया की भीख माँगने की बात उस समय करती है जब वह चारों ओर से खुद को घिरा हुआ और असहाय पाती है। जब उसे बचने का कोई और उपाय नहीं सूझता, तो एक पल के लिए उसके मन में यह कमजोर विचार आता है कि शायद वह हत्यारे बनवीर के सामने गिड़गिड़ाए और उसके मन में थोड़ी दया जगाकर कुँवर के प्राण बचा ले । यह कथन उसकी उस क्षण की চরম निराशा और बेबसी को दिखाता है, जिसके बाद वह अपने महान बलिदान का निश्चय करती है।

८) “मैं तो उनके लिए अपनी जान तक हाजिर कर सकता हूँ।”

क) वक्ता का परिचय दीजिये।

इस कथन का वक्ता कीरत है, जो बारी जाति का एक साधारण सेवक है । उसका काम महलों से जूठी पत्तलें उठाकर ले जाना है । वह लगभग चालीस वर्ष का एक निष्ठावान और स्वामिभक्त व्यक्ति है, जिसके मन में राजपरिवार, विशेषकर कुँवर उदयसिंह के प्रति गहरा प्रेम और सम्मान है ।

ख) वक्ता कुँवर के प्रति अपना प्रेम किन शब्दों में व्यक्त करता है?

वक्ता कीरत, कुँवर उदयसिंह के प्रति अपना प्रेम और अपनी अगाध निष्ठा इन्हीं शब्दों में व्यक्त करता है, “मैं तो उनके लिए अपनी जान तक हाजिर कर सकता हूँ।” जब पन्ना उसे कुँवर को बचाने की जोखिम भरी योजना बताती है, तो वह बिना एक पल सोचे अपनी जान की परवाह किए बिना इस खतरनाक काम के लिए तैयार हो जाता है। यह वाक्य उसकी सच्ची स्वामिभक्ति का प्रमाण है।

ग) वक्ता की टोकरी उस दिन बड़ी क्यों थी?

वक्ता कीरत की टोकरी उस दिन सामान्य से बड़ी थी क्योंकि महल में दीपदान का उत्सव मनाया गया था । उत्सव के कारण बनवीर और कई सामंतों ने भी महल में भोजन किया था, जिससे जूठी पत्तलों की संख्या बहुत बढ़ गई थी । सारी पत्तलें छोटी टोकरी में नहीं आ सकती थीं, इसलिए कीरत एक बड़ी टोकरी लेकर आया था । यही बड़ी टोकरी बाद में कुँवर को छिपाने के काम आई।

घ) वक्ता स्वयं को धन्य क्यों मान रहा था?

वक्ता कीरत स्वयं को धन्य इसलिए मान रहा था क्योंकि उसे मेवाड़ के कुलदीपक के प्राण बचाने का महान अवसर मिला था । जिस संकट की घड़ी में बड़े-बड़े सामंत और सैनिक डरकर छिप गए थे, उस समय इतिहास रचने का यह सौभाग्य उसे, एक साधारण पत्तल उठाने वाले को, प्राप्त हुआ था। अपने अन्नदाता के प्राणों की रक्षा करने के इस मौके को वह अपना परम सौभाग्य मान रहा था ।

९) “अब ठीक है। कुँवर की रक्षा हो गई।”

क) श्रोता क्यों चिंतित थी?

इस प्रसंग में श्रोता, महल की परिचारिका सामली, कुँवर उदयसिंह के प्राणों के लिए अत्यधिक चिंतित थी। उसे यह पता चल चुका था कि बनवीर ने महाराणा विक्रमादित्य की हत्या कर दी है और अब वह कुँवर को मारने आ रहा है। महल के चारों ओर बनवीर के सैनिकों का पहरा था और बचने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा था, इसलिए उसे कुँवर का जीवन असंभव संकट में लग रहा था।

ख) कुँवर की रक्षा कैसे हुई?

कुँवर उदयसिंह की रक्षा पन्ना धाय की अद्भुत और साहसी योजना से हुई। पन्ना ने महल से जूठी पत्तलें उठाने वाले सेवक, कीरत बारी, की मदद ली। उसने कुँवर को कीरत की बड़ी टोकरी में लिटा दिया और ऊपर से जूठी पत्तलों से ढक दिया। कीरत उस टोकरी को अपने सिर पर उठाकर महल के पहरेदारों के सामने से निडर होकर निकल गया, क्योंकि किसी ने भी एक साधारण सेवक पर शक नहीं किया।

ग) वक्ता की प्राणरक्षा क्यों जरूरी थी?

वक्ता, पन्ना धाय, की प्राणरक्षा इसलिए जरूरी थी क्योंकि कुँवर उदयसिंह अभी छोटे थे और अपनी धाय माँ से बहुत अधिक स्नेह करते थे। पन्ना ही उनकी एकमात्र संरक्षक और सहारा थीं। यदि पन्ना के प्राण चले जाते, तो महल से सुरक्षित निकलने के बाद भी अकेले और असहाय कुँवर का जीवित रहना और पालन-पोषण संभव नहीं हो पाता। कुँवर के भविष्य के लिए पन्ना का जीवित रहना अनिवार्य था।

घ) वक्ता अपने पुत्र के प्राणों का बलिदान क्यों देनेवाली थी?

वक्ता, पन्ना, अपने पुत्र चंदन के प्राणों का बलिदान इसलिए देने वाली थी ताकि कुँवर उदयसिंह के बचने की योजना पूरी तरह सफल हो सके। वह जानती थी कि केवल कुँवर को महल से बाहर भेज देना काफी नहीं है। जब बनवीर को कुँवर अपनी शैया पर नहीं मिलेंगे, तो वह तुरंत उनकी खोज में सैनिकों को दौड़ा देगा। बनवीर को धोखा देने के लिए पन्ना ने अपने पुत्र चंदन को कुँवर के बिस्तर पर सुला दिया ताकि बनवीर उसे ही कुँवर समझकर मार डाले।

ङ) श्रोता ने माँ भवानी से क्या प्रार्थना की?

इस प्रसंग में श्रोता पन्ना है जो अपने पुत्र का बलिदान देने जा रही थी। उसने माँ भवानी से प्रार्थना की कि वे उसे इतनी शक्ति और कठोरता दें कि वह अपने कर्तव्य का पालन कर सके। उसने माँ से विनती की कि वे उसके ममतामयी हृदय को वज्र का बना दें और उसमें पत्थर रख दें, ताकि वह अपने पुत्र की मृत्यु को सहन कर सके और चित्तौड़ के राजवंश की रक्षा में अपना रक्त दे सके।

१०) “माँ! अच्छी तरह…”

क) बालक चंदन को चोट कैसे लगी?

बालक चंदन को चोट तब लगी जब उसने महल के चारों ओर सिपाहियों को इकट्ठा होते देखा। यह देखने के लिए कि बाहर क्या हो रहा है, वह अँधेरे में झरोखे पर चढ़ गया। जब वह नीचे कूदा तो उसका पैर एक टूटे हुए शीशे पर पड़ गया, जो उसके अँगूठे में चुभ गया और खून बहने लगा।

ख) चंदन को सोना से क्या शिकायत थी?

चंदन को सोना से यह शिकायत थी कि जब से कुँवर उदयसिंह ने उसका नाच देखा है, तब से वे बदल गए हैं। अब वे चंदन के साथ खेलते नहीं हैं, शिकार पर नहीं जाते और छोटी-छोटी बातों पर रूठ जाते हैं। चंदन को लगता था कि सोना ने ही उसके मित्र और भाई जैसे कुँवर को उससे दूर कर दिया है।

ग) चंदन कुँवर के साथ खाना क्यों खाना चाहता था?

चंदन कुँवर के साथ बैठकर खाना इसलिए खाना चाहता था क्योंकि दोनों के बीच एक बचकाना मुकाबला चलता था। कुँवर जी चंदन को चिढ़ाते थे कि वे उससे ज़्यादा खाते हैं। चंदन इसी बात को गलत साबित करना चाहता था और उनके साथ बैठकर उनसे ज़्यादा खाकर यह दिखाना चाहता था कि वह भी कम नहीं है। यह उन दोनों के बीच के गहरे और सहज प्रेम को दिखाता है।

घ) माँ की आँखों में आँसू क्यों थे?

माँ पन्ना की आँखों में आँसू इसलिए थे क्योंकि वह अपने प्यारे पुत्र चंदन से बात कर रही थी, यह जानते हुए कि कुछ ही पलों में वह उसे मृत्यु के मुँह में भेजने वाली है। चंदन की भोली और प्यारी बातें सुनकर एक माँ के रूप में उसका हृदय पीड़ा से फटा जा रहा था। वे आँसू उसके कर्तव्य और ममता के बीच चल रहे भयानक द्वंद्व और पुत्र को खोने के असहनीय दुख का प्रतीक थे।

११) (प्रसंग: पन्ना चंदन को कुँवर की शैया पर सुलाती है)

क) माँ ने चंदन को कुँवर की शैया पर सोने को क्यों कहा?

माँ पन्ना ने अपने पुत्र चंदन को कुँवर की शैया पर सोने के लिए इसलिए कहा क्योंकि यह उसकी भयानक योजना का हिस्सा था। वह जानती थी कि हत्यारा बनवीर सीधे कुँवर के शयनकक्ष में आएगा और बिस्तर पर सो रहे बच्चे को ही कुँवर समझेगा। पन्ना ने अपने पुत्र को कुँवर के स्थान पर सुलाकर उसे एक बलि का बकरा बनाया, ताकि बनवीर उसे मारकर चला जाए और असली कुँवर के प्राण बच जाएँ।

ख) चंदन के शैया पर लेटने से माँ क्यों चीख उठी?

जैसे ही चंदन कुँवर की शैया पर लेटा, माँ पन्ना चीख उठी क्योंकि उस एक क्षण में उसे अपनी योजना की पूरी भयानकता का अहसास हुआ। अब यह केवल एक विचार नहीं था, बल्कि एक हृदयविदारक सच्चाई थी जो उसकी आँखों के सामने घटित हो रही थी। अपने ही पुत्र को उसकी मृत्यु-शैया पर लेटते हुए देखना एक माँ के लिए असहनीय था और उसकी चीख उसी दर्द और पीड़ा की अभिव्यक्ति थी।

ग) माँ ने चंदन को चित्तौड़ के इतिहास के बारे में क्या बताया?

अपने पुत्र का ध्यान बंटाने और उसे वीरता के भाव से भरने के लिए माँ पन्ना ने उसे चित्तौड़ के वीर योद्धाओं की कहानियाँ सुनाईं । उसने बताया कि कैसे बप्पा रावल ने मेवाड़ की नींव रखी, दूसरे राजाओं पर विजय प्राप्त की और हारित ऋषि के आशीर्वाद से एकलिंग जी का मंदिर बनवाया । उसने राजा नरवाहन द्वारा शत्रुओं को हराने, राजा हंसपाल द्वारा राज्यों को जीतने और रावल सामंत सिंह द्वारा गुजरात के सोलंकी राजा उदयपाल को पराजित करने का भी वर्णन किया । अंत में उसने रावल जयसिंह और अमरसिंह जैसे अन्य वीरों के बारे में भी बताया।

घ) बालक चंदन क्यों चौंक उठा?

बालक चंदन, कुँवर उदयसिंह की शैया पर अपनी माँ से चित्तौड़ के वीरों की कहानियाँ सुनते-सुनते सो गया था। उसे हलकी नींद आयी थी लेकिन तभी उसे महसूस हुआ कि कोई काली और भयावह छाया उसके सिर के पास आकर खड़ी हो गई है और उसे मारने के लिए तलवार उठा ली है। इससे बालक चंदन चौंककर जाग उठा।

१२) “आज मैंने भी दीपदान किया है।”

क) पन्ना किस दीपदान की बात कर रही है?

पन्ना उस दीपदान की बात नहीं कर रही है जो नगर में मनाया जा रहा था। वह अपने द्वारा किए गए अद्वितीय और अलौकिक दीपदान की बात कर रही है। उसने चित्तौड़ के राजवंश रूपी दीपक को बचाने के लिए अपने कुल के दीपक, यानी अपने पुत्र चंदन के जीवन का दान कर दिया था। उसने अपने जीवन के सबसे अनमोल दीप को कर्तव्य की बलिवेदी पर चढ़ा दिया था और उसका यह दीपदान रक्त की धारा पर तैर रहा था।

ख) पन्ना क्यों विलाप कर रही थी?

पन्ना अपनी आँखों के सामने अपने निर्दोष पुत्र की नृशंस हत्या देखने के बाद एक माँ के असहनीय दुख के कारण विलाप कर रही थी। यद्यपि एक स्वामिभक्त धाय माँ के रूप में उसका कर्तव्य पूरा हो चुका था, लेकिन एक माँ के रूप में वह पूरी तरह टूट चुकी थी। उसका विलाप अपने पुत्र को खोने की पीड़ा और उस भयानक दृश्य की स्मृति के कारण था, जिसकी वह स्वयं कारण बनी थी।

ग) पन्ना ने स्वयं को सर्पिणी क्यों कहा?

पन्ना ने स्वयं को सर्पिणी इसलिए कहा क्योंकि उसे अपने कृत्य पर घोर आत्मग्लानि हो रही थी। जिस प्रकार कुछ साँपिनें अपने ही अंडों या बच्चों को खा जाती हैं, उसी प्रकार पन्ना को भी लग रहा था कि उसने भी एक राक्षसी माँ की तरह अपने ही बच्चे को मौत के मुँह में धकेल दिया है। यह उसके मातृत्व के अपराध-बोध और स्वयं के प्रति घृणा की चरम अभिव्यक्ति थी।

 घ) पन्ना ने कौन सा बलिदान दिया था?

पन्ना ने मातृभूमि और अपने कर्तव्य के लिए अपने इकलौते पुत्र के प्राणों का बलिदान दिया था। जब चित्तौड़ के सिंहासन के उत्तराधिकारी कुँवर उदयसिंह के प्राण संकट में थे, तो पन्ना ने उन्हें बचाने के लिए अपने पुत्र चंदन को उनकी जगह सुला दिया। हत्यारे बनवीर ने चंदन को ही उदयसिंह समझकर मार डाला। इस प्रकार पन्ना ने इतिहास का सबसे महान और हृदयविदारक बलिदान दिया।

१३) “और मैं उसे यह तलवार दूँगा।”

क) कौन किसे तलवार देना चाहता है? यहाँ तलवार देने का क्या अर्थ है?

इस वाक्य में वक्ता बनवीर, कुँवर उदयसिंह को तलवार देना चाहता है। यहाँ ‘तलवार देने’ का सीधा और क्रूर अर्थ है तलवार से उसकी हत्या करना। यह बनवीर द्वारा बोला गया एक व्यंग्य है। वह महाराणा विक्रमादित्य की हत्या करने के बाद अब अंतिम उत्तराधिकारी उदयसिंह को भी मारकर सिंहासन का रास्ता पूरी तरह साफ कर देना चाहता है।

ख) वक्ता ने सोना को श्रोता के पास क्यों भेजा था?

वक्ता बनवीर ने सोना को श्रोता पन्ना के पास इसलिए भेजा था ताकि वह अपनी बातों में फँसाकर पन्ना और कुँवर उदयसिंह, दोनों को महल से बाहर उत्सव में ले आए। बनवीर की योजना थी कि उत्सव की भीड़ और शोरगुल में वह आसानी से कुँवर की हत्या कर देगा और किसी को पता भी नहीं चलेगा।

ग) वक्ता ने श्रोता को क्या लालच दिया और क्यों?

वक्ता बनवीर ने श्रोता पन्ना को मारवाड़ में एक बड़ी जागीर देने का लालच दिया। उसने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वह जानता था कि कुँवर उदयसिंह तक पहुँचने के रास्ते में पन्ना ही एकमात्र और सबसे बड़ी बाधा है। उसे लगा कि शायद धन और पद के लालच में आकर पन्ना अपनी स्वामिभक्ति को त्याग देगी और कुँवर को उसके हवाले कर देगी, जिससे उसका काम बिना किसी विरोध के पूरा हो जाएगा।

घ) वक्ता कुँवर उदयसिंह को क्यों माँगता है?

वक्ता बनवीर, पन्ना से कुँवर उदयसिंह को इसलिए माँगता है ताकि वह उनकी हत्या कर सके। बनवीर जानता था कि जब तक चित्तौड़ का असली उत्तराधिकारी जीवित है, तब तक उसका सिंहासन पर बैठना अस्थायी और असुरक्षित है। प्रजा और सामंत कभी भी उदयसिंह के पक्ष में विद्रोह कर सकते थे। इसलिए, अपने राज को निष्कंटक बनाने के लिए वह उदयसिंह को मारकर रास्ते के अंतिम काँटे को भी हटा देना चाहता था।

१४) “जब तक वह जीवित…”

क) ऐसा किसने कहा व क्यों?

यह वाक्य बनवीर ने पन्ना से कहा। उसने ऐसा तब कहा जब पन्ना उससे उदयसिंह के प्राणों की भीख माँग रही थी और कह रही थी कि वह कुँवर को लेकर कहीं दूर चली जाएगी। बनवीर ने यह बात इसलिए कही क्योंकि वह जानता था कि जब तक उदयसिंह जीवित रहेगा, वह सिंहासन के लिए एक स्थायी खतरा बना रहेगा। उसे डर था कि बड़े होकर उदयसिंह या उनके समर्थक कभी भी उससे राज वापस छीन सकते हैं, इसलिए वह उसे किसी भी कीमत पर जीवित नहीं छोड़ना चाहता था।

ख) बनवीर ने किस प्रकार का दीपदान किया?

बनवीर ने एक बहुत ही भयानक और राक्षसी दीपदान किया। जहाँ एक ओर पूरा नगर देवी माँ को दीये दान कर रहा था, वहीं दूसरी ओर बनवीर ने एक निर्दोष बालक (चंदन) के रक्त से भरा दीपक यमराज को दान किया। उसने एक पवित्र उत्सव को एक मासूम की हत्या से अपवित्र कर दिया। उसका यह क्रूर कर्म उसके अमानवीय चरित्र को दर्शाता है और कहानी के शीर्षक को एक भयावह अर्थ देता है।

ग) पन्ना अपने पुत्र को बचाने का क्या प्रयत्न करती है?

जब बनवीर, कुँवर की शैया पर सोए चंदन को मारने के लिए आगे बढ़ता है, तो पन्ना अपने पुत्र को बचाने का अंतिम प्रयत्न करती है। जब उसकी विनती और गिड़गिड़ाने का कोई असर नहीं होता, तो उसकी ममता और राजपूत वीरता जाग उठती है। वह तुरंत अपनी कटार निकालकर बनवीर पर आक्रमण कर देती है। यद्यपि बनवीर अपनी ढाल पर उसका वार रोक लेता है और उससे कटार छीन लेता है, लेकिन पन्ना का यह प्रयास दिखाता है कि उसने अंत तक हार नहीं मानी और एक माँ तथा एक वीरांगना की तरह अपने पुत्र की रक्षा के लिए लड़ी।

 १) प्रस्तुत एकांकी के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिये।

प्रस्तुत एकांकी का शीर्षक दीपदान अत्यंत सार्थक और प्रतीकात्मक है । कहानी उस रात की है जब पूरे चित्तौड़ नगर में नाच-गाने के साथ दीपदान का उत्सव मनाया जा रहा था । लेकिन एकांकी का वास्तविक और गहरा अर्थ नायिका पन्ना धाय के महान बलिदान से जुड़ा है । जिस प्रकार लोग देवी माँ को दीपक दान करते हैं, उसी प्रकार पन्ना ने मेवाड़ के कुलदीपक, कुँवर उदयसिंह, के प्राणों की रक्षा के लिए अपने पुत्र रूपी दीपक, चंदन, का दान कर दिया । उसने अपने जिगर के टुकड़े को मृत्यु की शैया पर सुलाकर अपने कर्तव्य का पालन किया । इस तरह, उसका यह त्याग ही सच्चा ‘दीपदान’ था, जिसने राजपूताने के भविष्य को अंधकार में डूबने से बचा लिया।

२) प्रस्तुत एकांकी में किन जीवनमूल्यों की स्थापना हुई है?

‘दीपदान’ एकांकी में स्वामिभक्ति, कर्तव्यनिष्ठा, त्याग, देशप्रेम और असीम साहस जैसे सर्वोच्च जीवनमूल्यों की स्थापना हुई है । पन्ना धाय का चरित्र इन सभी मूल्यों का प्रतीक है। उसकी स्वामिभक्ति इतनी प्रबल है कि वह अपने पुत्र मोह से भी ऊपर उठ जाती है । जब बनवीर जैसा शक्तिशाली व्यक्ति उसे जागीर का लालच देता है, तब भी वह अपने कर्तव्य के पथ से नहीं डिगती । संकट की घड़ी में वह अपनी बुद्धि और साहस का परिचय देते हुए कुँवर को सुरक्षित महल से बाहर भेज देती है । अंत में, अपने स्वामी और अपनी मातृभूमि के भविष्य के लिए अपने ही पुत्र का बलिदान देकर वह त्याग की ऐसी मिसाल कायम करती है, जो मनुष्य मात्र के लिए प्रेरणादाई है ।

३) चित्तौड़ का राज्य भारत के इतिहास में किन कारणों से महत्वपूर्ण स्थान रखता है?

चित्तौड़ का राज्य भारत के इतिहास में अपनी अद्वितीय वीरता, स्वतंत्रता के प्रति अटूट प्रेम और गौरवशाली बलिदान के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है । वहाँ के सिसोदिया वंश के शासकों ने कभी किसी की अधीनता स्वीकार नहीं की और अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहे । महाराणा सांगा से लेकर महाराणा प्रताप तक, सभी ने युद्ध के मैदान में अदम्य वीरता का प्रदर्शन किया । महाराणा प्रताप ने तो घास की रोटियाँ खाईं, पर मुगलों के सामने कभी अपना सिर नहीं झुकाया । इतना ही नहीं, चित्तौड़ की वीरांगनाएँ भी अपने सम्मान की रक्षा के लिए ‘जौहर’ की ज्वाला में कूदकर आत्मबलिदान कर देती थीं, पर अपना शील भंग नहीं होने देती थीं । अपने कुल, धर्म और देश के लिए प्राणों की बाजी लगा देने की यह परंपरा चित्तौड़ को भारतीय इतिहास में अमर बनाती है ।

४) भारत के इतिहास में विश्वासघात की कुछ घटनाओं के उदाहरण दीजिये।

भारत का इतिहास जहाँ वीरता की गाथाओं से भरा है, वहीं विश्वासघात की घटनाओं से भी कलंकित हुआ है, जिनकी देश को भारी कीमत चुकानी पड़ी । इसका एक बड़ा उदाहरण जयचंद है, जिसने पृथ्वीराज चौहान के विरुद्ध मोहम्मद गोरी का साथ देकर न केवल राजपूत जाति से विश्वासघात किया, बल्कि भारत में विदेशी आक्रमण का रास्ता भी खोल दिया । इसी प्रकार, खानवा के युद्ध में जब महाराणा सांगा बाबर के विरुद्ध लड़ रहे थे, तो राजा शैलादित्य अपनी सेना के साथ बीच युद्ध में दुश्मनों से जा मिला, जिससे एक जीती हुई लड़ाई हार में बदल गई और भारत में मुगल साम्राज्य की नींव पड़ी । एक और शर्मनाक घटना प्लासी के युद्ध में हुई, जहाँ नवाब सिराजुद्दौला अपने ही सेनापति मीर जाफ़र की गद्दारी के कारण अंग्रेजों से हार गए, जिसके बाद भारत में ब्रिटिश शासन की शुरुआत हुई । इन विश्वासघातियों ने अपने नाम तो कलंकित किए ही, देश को भी अपार क्षति पहुँचाई ।

५) धाय माँ पन्ना का चरित्र चित्रण कीजिये।

पन्ना धाय ‘दीपदान’ एकांकी की नायिका और भारतीय नारी के त्याग, साहस और कर्तव्यनिष्ठा का एक अमर प्रतीक है । वह खीची जाति की एक राजपूतानी है, जो चित्तौड़ के राजकुमार उदयसिंह की धाय माँ है । वह अत्यंत कर्तव्यपरायण और स्वामिभक्त है और कुँवर के लालन-पालन में वह अपने सगे पुत्र चंदन को भी भूल सी जाती है । वह साहसी और बुद्धिमान भी है, जो बनवीर के षड्यंत्र को तुरंत भाँप लेती है और संकट के समय घबराने के बजाय चतुराई से राजकुमार को बचाने की योजना बनाती है । उसका चरित्र त्याग की पराकाष्ठा को दर्शाता है, जब वह मेवाड़ के राजवंश की रक्षा के लिए अपने कलेजे के टुकड़े, अपने पुत्र, के प्राणों का बलिदान दे देती है । उसका यह अद्वितीय त्याग उसे इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित कर देता है ।

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