विज्ञान का बढ़ता विनाशकारी स्वरूप

वर्तमान समय में विज्ञान का प्रयोग मनुष्य के कल्याण के लिए कम और सृष्टि के विनाश के लिए ज्यादा हो रहा है । हम आज तक सारी बीमारियों का इलाज नहीं ढूंढ पाए लेकिन ऐसे अस्त्र शस्त्र जरूर बना लिए हैं जिससे सारी दुनिया को सैकड़ों बार नष्ट किया जा सकता है । इस विषय के पक्ष या विपक्ष में अपना मत तर्कों के साथ लिखिए ।

विज्ञान निस्संदेह मानव जाति को मिला सबसे बड़ा वरदान है, किंतु हर वरदान की तरह इसके साथ एक अभिशाप भी जुड़ा हुआ है। यह एक दोधारी तलवार की तरह है जिससे जीवन की रक्षा भी की जा सकती है और जीवन का सर्वनाश भी किया जा सकता है। जब हम वर्तमान समय में विज्ञान के उपयोग का मूल्यांकन करते हैं, तो यह देखकर निराशा होती है कि इसका पलड़ा कल्याण की ओर कम और विनाश की ओर अधिक झुका हुआ प्रतीत होता है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि आज विज्ञान का प्रयोग मनुष्य के कल्याण के लिए कम बल्कि सृष्टि के विनाश का साधन बनाने के लिए ज्यादा होने लगा है।

इस तर्क का सबसे बड़ा और भयावह प्रमाण हमारे सैन्य शस्त्रागारों में मिलता है। यह एक कटु सत्य है कि विज्ञान का प्रयोग करके हमने आज तक कैंसर, एड्स या अल्जाइमर जैसी अनेक गंभीर बीमारियों का अचूक इलाज नहीं खोजा है, जिनसे हर वर्ष लाखों लोग मरते हैं। किंतु हमने ऐसे परमाणु और हाइड्रोजन बम अवश्य बना लिए हैं जो कुछ ही क्षणों में संपूर्ण मानवता और इस धरती पर मौजूद जीवन को एक नहीं, बल्कि सैकड़ों बार समाप्त कर सकते हैं। द्वितीय विश्व युद्ध में हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बमों ने विज्ञान के इस विनाशकारी चेहरे की पहली झलक दिखाई थी। आज तो उससे हजारों गुना अधिक शक्तिशाली हथियार दुनिया के कई देशों के पास हैं, जो मानवता के सिर पर हर पल लटकती तलवार के समान हैं।

ज्ञान पाया तो विनाश का सामान बना लिया,
जीवन देने के बदले, मौत का फरमान बना लिया।
धरती को स्वर्ग बनाने की जिसमें शक्ति थी,
उसी विज्ञान को हमने हैवान बना लिया।

विज्ञान के विकास ने औद्योगिक क्रांति को जन्म दिया, जिसने हमारे जीवन को आरामदायक बनाया। किंतु इसी प्रगति की कीमत हम आज पर्यावरण के विनाश के रूप में चुका रहे हैं। कल-कारखानों और वाहनों ने हवा में जहर घोल दिया है, रासायनिक कचरे ने नदियों को मृत कर दिया है और कीटनाशकों ने हमारी भूमि को बंजर बना दिया है। ग्लोबल वार्मिंग, पिघलते ग्लेशियर और ओजोन परत में छेद विज्ञान के अंधाधुंध उपयोग के ही दुष्परिणाम हैं। हम विकास के नाम पर उस डाल को ही काट रहे हैं जिस पर हम बैठे हैं। जब जीवन का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा, तो यह वैज्ञानिक प्रगति और विकास किसके काम आएगा?

प्रगति के नाम पर प्रकृति का हरण किया,
हमने अपने ही घर का कैसा क्षरण किया।

खतरे यहीं समाप्त नहीं होते। विज्ञान अब विनाश के नए अध्याय लिख रहा है। आज देशों को हराने के लिए बम गिराने की भी आवश्यकता नहीं है। साइबर युद्ध (Cyber Warfare) के माध्यम से किसी भी देश की बैंकिंग व्यवस्था, पावर ग्रिड और संचार प्रणाली को घर बैठे ठप किया जा सकता है, जिससे देश में अराजकता फैल सकती है। इसके अतिरिक्त, जेनेटिक इंजीनियरिंग के माध्यम से खतरनाक वायरस और बैक्टीरिया (Bioweapons) बनाने की क्षमता भी विज्ञान ने हमें दे दी है, जो परमाणु बम से भी बड़ा खतरा बन सकते हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) से लैस स्वचालित हथियार, जिन्हें ‘किलर रोबोट’ कहा जाता है, अब कल्पना नहीं बल्कि हकीकत बनने की राह पर हैं, जो बिना मानवीय आदेश के स्वयं ही जीवन और मृत्यु का फैसला कर सकेंगे।

अंत में, यह स्पष्ट है कि समस्या विज्ञान में नहीं, बल्कि उसका उपयोग करने वाले मनुष्य के विवेक और उसकी नियत में है। मनुष्य की सत्ता और शक्ति की भूख ने विज्ञान को कल्याण का माध्यम बनाने के बजाय विनाश का एक शक्तिशाली औजार बना दिया है।

ना ज्ञान बुरा है, ना विज्ञान बुरा है,
बुरे हैं वो इरादे, जिनसे इंसान घिरा है।

जब तक मानवता अपनी नैतिक चेतना को अपनी वैज्ञानिक क्षमता के बराबर नहीं लाएगी, तब तक विज्ञान का विनाशकारी स्वरूप उसके कल्याणकारी स्वरूप पर भारी पड़ता रहेगा। यह प्रश्न आज मानवता के भविष्य के सामने सबसे बड़ा प्रश्न बनकर खड़ा है कि वह अपनी इस असीमित शक्ति का उपयोग अपनी रक्षा के लिए करेगी या अपने ही सर्वनाश के लिए।

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