मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। पैदा होते ही उसके कई रिश्ते बन जाते हैं, जैसे माता-पिता, भाई-बहन, और अन्य संबंधी। किंतु इन सब रिश्तों के अलावा एक और रिश्ता है जो हम स्वयं बनाते हैं – और वह है मित्रता का रिश्ता। मित्रता जीवन का वह अनमोल तोहफा है जो हमारे जीवन को सार्थक और आनंदमय बनाता है। एक सच्चे मित्र के बिना जीवन की कल्पना करना भी कठिन है।
ऐसा कहा जाता है कि मनुष्य जीवन में उतनी ही प्रगति करता है, जितना उसके मित्र और साथी उसे आगे बढ़ने में सहयोग करते हैं। मनुष्य जब जीवन में आगे बढ़ता है तो वह कोशिश करता है कि उसके मित्र पीछे न रह जाएँ। वह किसी भी तरह उनकी सहायता कर उन्हें भी आगे बढ़ाने के लिए प्रयत्नशील रहता है।
ना कोई बंधन, ना कोई जोर,
बस विश्वास की अटूट डोर।
जीवन के सफर में सुख और दुःख आते-जाते रहते हैं। कठिन समय में जब हमारे अपने भी कभी-कभी साथ छोड़ देते हैं, तब एक सच्चा मित्र ही हमारे साथ खड़ा रहता है। वह हमें भावनात्मक सहारा देता है और मुश्किलों से लड़ने की हिम्मत देता है। हम अपने मन की हर बात, हर उलझन बिना किसी संकोच के अपने मित्र से कह सकते हैं। एक सच्चा मित्र केवल हमारे सुख में ही नहीं, बल्कि दुःख में भी हमारा भागीदार होता है। वह उस दीपक की तरह है जो हमारे जीवन के अंधकारमय क्षणों में आशा की किरण बनकर आता है।
एक अच्छा मित्र हमारे लिए केवल एक साथी ही नहीं, बल्कि एक पथ-प्रदर्शक भी होता है। वह हमें सही और गलत का भेद बताता है और हमें गलत रास्ते पर जाने से रोकता है। एक सच्चा मित्र हमारे मुँह पर हमारी प्रशंसा नहीं करता, बल्कि हमारी कमियों को उजागर कर हमें एक बेहतर इंसान बनने के लिए प्रेरित करता है। वह एक दर्पण की तरह होता है जो हमें हमारी असलियत दिखाता है। जिस प्रकार भगवान कृष्ण ने सुदामा की मित्रता निभाई और उन्हें सही मार्ग दिखाया, उसी प्रकार एक सच्चा मित्र भी हमारे जीवन को सही दिशा देता है।
इतिहास में हमें कई गहरी दोस्तियों के उदाहरण मिलते हैं। रोम के जूलियस सीज़र और मार्क एंटनी की दोस्ती बहुत प्रसिद्ध है। कितनी भी नामुमकिन लड़ाई हो, मौत सामने हो, या कितना बड़ा लालच दिया जाए; मार्क एंटनी हमेशा अपनी सेना लेकर जूलियस सीज़र की सहायता करने पहुँच जाता था। अपने मित्र हेफेस्टियन की मृत्यु के बाद विश्वविजेता सिकंदर के दुःख के समुद्र में डूबने का वर्णन इतिहास में मिलता है। तानाजी मालुसरे और शिवाजी महाराज में भी बड़ी गहरी दोस्ती थी। शिवाजी महाराज के स्वराज के सपने को पूरा करने के लिए तानाजी ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए।
सुख में हँसे जो साथ-साथ,
दुख में थामा जिसने हाथ।
मित्र वो अनमोल रत्न है,
जीवन में जिसकी सच्ची बात।
यह भी सत्य है कि मित्र का चुनाव बहुत सोच-समझकर करना चाहिए, क्योंकि एक मूर्ख या स्वार्थी मित्र किसी शत्रु से भी अधिक हानिकारक हो सकता है। सच्ची मित्रता किसी लाभ या स्वार्थ पर नहीं, बल्कि विश्वास, त्याग और निःस्वार्थ प्रेम पर टिकी होती है। आज के आधुनिक युग में, जहाँ लोग अक्सर अपने कामों में व्यस्त रहते हैं और रिश्ते कमजोर हो रहे हैं, वहाँ सच्ची मित्रता का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। सोशल मीडिया पर हजारों मित्र होना उतना मायने नहीं रखता जितना एक ऐसा मित्र होना जो जरूरत के समय हमारे साथ खड़ा हो। आजकल तो ऐसे उदाहरण भी मिल जाते हैं कि सोशल मीडिया में दस लाख लोग फॉलो करते हैं पर मिलने बुलाओ तो एक भी नहीं आता।
अंततः, यह कहा जा सकता है कि मित्रता ईश्वर का दिया हुआ एक वरदान है। यह एक ऐसा रिश्ता है जिसे हमें सँभाल कर रखना चाहिए। धन-दौलत तो आती-जाती रहती है, किंतु एक सच्चा मित्र यदि जीवन में मिल जाए तो समझना चाहिए कि हमने दुनिया की सबसे बड़ी दौलत पा ली है। हमें भी अपने मित्रों के प्रति उतने ही ईमानदार और समर्पित रहना चाहिए, क्योंकि मित्रता एक ऐसा पौधा है जिसे विश्वास और स्नेह के जल से सींचने पर ही वह फलता-फूलता है।
जीवन की डोर का आधार,
मित्रता है ईश्वर का उपहार।