गिरिधर कविराय की कुंडलियाँ
१) गुन के गाहक गुन के गाहक सहस नर, बिन गुन लहै न कोय। जैसे कागा कोकिला, शब्द सुनै सब कोय॥ शब्द सुनै सब कोय, कोकिला सबै सुहावन। दोऊ के इक रंग, काग सब भये अपावन॥ कह गिरिधर कविराय, सुनो हो ठाकुर मन के। बिन गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुन के॥ भावार्थ … Read more